Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 6
________________ प्रकाशकीय दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी की प्रबन्धकारिणी कमेटी की ओर से गत २४ वर्षों से साहित्य अनुसंधान का कार्य हो रहा है। सन् १९६१ में राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों को ग्रंप सूची का चतुर्थ भाग प्रकाशित हुषा था। तत्पश्चात जिगदस चरित, राजस्थान के जैन सन्त-व्यक्तित्व एवं कृतिस्व, हिन्दी पद संग्रह, जैन प्रय भंडासं इन राजस्थान, जन शोष और समीक्षा आदि रसर्च से सम्बन्धित पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है । जैन साहित्य के शोधाथियों के लिये विद्वानों की दृष्टि में वे सभी गुरुत महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है। शास्त्र मण्डारों की नथ सूची पंचम भाग के प्रकाशनार्थ विद्वानों के प्राग्रह को ध्यान में राते हुये और भगवान महावीर की २५०० वी निर्धारण शताब्दि समारोह हेतु गठित अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समिति द्वारा साह माम्निप्रसाद जी की अध्यक्षता में देहली अधिवेशन में राजस्थान के जैन ग्रन्यायारों की सूचियां प्रकाशन के कार्य को वीर निर्वाण संवत् २५७० तक पूर्ण करने हेतु पारित प्रस्ताव का भी ध्यान रखते हुये क्षेत्र कमेटी ने ग्रंथ सूची के पंचम भाग के प्रकाशन के कार्य को और गति दी और मुझे यह लिखते हुये प्रसन्नता है कि महावीर क्षेत्र कमेटी ने दिगम्बर जैन समिति के प्रस्ताव को क्रियान्वित करने में सर्व प्रथम पहल की है। नच सूची के इस पंचम भाग में राजस्ान के विभिन्न नगरों व कस्बों में स्थित ४५ शास्त्र भण्डारों के संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा के ग्रंथों का विवरण दिया गया है। यदि गुटकों में संग्रहीत पाण्डुलिपियों की संख्या को जोड़ा जाय तो इस सूची में बीस हजार से अधिक प्रचों का विवरण प्राप्त होगा । समूचे साहित्यिक जगत् में ऐसी विशाल ग्रन्थ सूची का प्रकाशन सभवतःप्रथम घटना है। ये हस्तलिखित अप राजस्थान के प्रमुख नगर जयपुर, अजमेर, उदयपुर, डूंगरपुर, कोटा, बूदो, प्रलवर, भरतपुर, एवं प्रमुख कस्बे टोडारायसिंह, मालपुरा, नैरणवा, इन्द्र गह, बयाना, बेर, दवलाना, फतेहपुर, दूनी राजमहल, बसबा, मावा, दौसा आदि के दिगम्बर जैन मन्दिरों में स्थापित शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत हैं। इसकी ग्रोथ सूचो बनाने का कार्य हमारे साहित्य शोघ विभाग के विद्वान् म कातूरचंद जी कासलीवाल एवं अनुपचन्द जी न्यायतीर्थ ने स्वयं स्थान स्थान पर जाकर अवलोकन कर पूर्ण किया है । यह उनको लगन एवं साहित्यिक रुचि का मुफल है। यह सूबी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। प्रथ सूची के अन्त में दी गई अनुक्रमणिकाए प्राचीन साहित्य पर कार्य करने वाले शोधार्थियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण सिद्ध होंगी। शोधाथियों एवं विद्वानों को कितनी ही अमात एवं अनुपलब्ध ग्रंथों का प्रथम बार परिचय प्राप्त होगा तथा भाषा के इतिहास में कितनी ही लुप्त कमियां और जुड़ सकेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है। भगवान महावीर के जीवन पर निबद्ध नबलराम फवि का "बदमान पुराण" कामा के शास्त्र भंडार में उपलब्ध हुमा है वह १७ वीं शताब्दी की कृति है सथा भगवान महावीर के जीवन से सम्बन्धित हिन्दी कृतियों में अत्यधिक प्राचीन है। श्रीमहामोर जी क्षेत्र की मोर से भगवान महावीर के जीवन से सम्बन्धित प्रमुख हिन्दी काव्यों के शीघ प्रकाशन की योजना विचाराधीन है।

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