Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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शास्त्र भण्डार दि० जैन मंदिर दबलाना
बूदी से १० मील पश्चिम की ओर स्थित दबलाना एक छोटा सा गांव है, लेकिन हस्तलिखित प्रथों के संग्रह की दृष्टि से महत्वपूरण है । यहां के भण्डार में ४२३ हस्तलिखित ग्र'थों का संग्रह है। संग्रह से ऐसा पता लगता है कि यह सारा भण्डार किसी भट्टारक अथवा साधु के पास था। जिसने यहां लाकर मंदिर में विराजमान कर दिया । भण्डार में काव्य, परित, कथा, रास, व्याकरण, आयुर्वेद एय ज्योतिष विषयक ग्रथों का अच्छा संग्रह है। बूदी, नणवा, गोठड़ा, इन्दरगढ़, जयपुर, जोधपुर सागवाडा एवं सीसवाली में लिखे हुए ग्रंथों को प्रमुखता है। सबसे प्राचीन प्रति षडावश्यक बालावबोध' को पाण्डुलिपि है जो संवत् १५२१ में मालवा मंडल की राजधानी उज्जैन में लिखी गयी थी। संवत् १४९६ में थिरिचत मेहउ कवि का प्रादिनाथ स्तवन, लालदास का इतिहाससार समुच्चय, साधु ज्ञानचन्द द्वारा रचित सिंहासन बनीसी, रामयश (केशवदास) रचना काल सं० १६८०, ग्रादि ग्रंथों के नाम उल्लेखनीय हैं । भण्डार में संग्रहीत पाषटुलिपियां भी प्राचीन एवं शुद्ध है।
शास्त्र भण्डार दि० जंन मन्दिर पार्श्वनाथ इन्दरगद
इन्दरगह कोटा राज्य का प्राचीन शहर है। यह परिचमी रेलवे की बड़ो लाइन पर सवाईमाधोपुर और कोटा के मध्य में स्थित है । यहां के दि० जन पावताय मन्दिर में हस्तलिखिन ग्रंथों का एक संग्रह उपलब्ध है शास्त्र मण्डार में हस्तलिखित प्रयों की संख्या २८६ है। इसमें सिद्धान्त, स्तोत्र, प्र. चार शास्त्र, से सम्बधित पाण्डुलिपियों को सख्या मात्राधिक हैं कुछ ग्रंथ ऐसे भी है । जिनका लेखन इस नगर में हुपा था।
शास्त्र भण्डार दि० जन अग्रवाल मन्दिर फतेहपुर (शेखावाटी)
फतेहपुर सीकर जिले का एक सुन्दरतम नगर है । चुरु से सीकर जाने वाली रेल्वे लाइन पर यह पश्चिमी रेल्वे का स्टेशन है । जैन साहित्य और कला की दृष्टि से फतेहपुर प्रारम्भ से ही केन्द्र रहा । देहली के भट्टारकों का इस नगर से सीधा सम्पर्क रहा और वे यहां की व्यवस्था एवं साहित्य संग्रह की भोर विशेष ध्यान देते रहे । यहां का शास्त्र भण्डार इन्हीं भट्टारकों की देन है । शास्त्र भण्डार में हस्तलिखित बयों एवं गुटकों की संख्या २७५ हैं । इनमें गुटकों की संख्या ७३ हैं जिनमें कितने ही महत्वपूर्ण कृतियां संग्रहीत है । पं.जीवनराम द्वारा लिखा हुआ यहां एक महत्वपूर्ण गुटका है जिसके १२२२ पृष्ठ है अभी तक शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध गुटकों में यह सबसे बड़ा गुटका है इसमें ज्योतिष एवं आयुर्वेद के पाठों का संग्रह हैं। जिनकी एक लाख श्लोक प्रमाण संख्या है । इस गुटके को लिखने में जीवनराम को २२.वर्ष (संवत् १८३८ से १८६२) लगे थे। इसका लेखन चुरु में प्रारम्भ करके फतेहपुर में समाप्त हुमा था। इसी तरह भण्डार में एक णमोकार महारम्य कथा" को एक पाण्डुलिपि है जिसमें १३"x७३" प्राकार काले ७८१ पत्र हैं। यह पाण्डुलिपि शामित्र है जिसमें ७६ चित्र हैं जो जैन पौराणिक पुरुषों के जीवन कथानों पर तैयार किये गये है। प्रध मण्डार में हस्तलिखित प्रथ की अधिक संख्या न होते हुये भी कितने ही हिन्दी के मय प्रथम वार उपलब्ध हुए जिनका परिचय आगे दिया गया है । यहां मयों की लिपि का कार्य भी होता था। पिलोकसार भाषा (संवत् १८०३), हरिवंश पुराण (संवत् १८२४) महावीर पुराण, समयसार नाटक एवं मानाराव मादि की कितनी ही प्रतियों के नाम गिनाये जा सकते हैं । प्रय सूत्री के कार्य में नगर के प्रसिद्ध समाज सेवी एवं साहित्य प्रेमी श्री गिनीलाल जी जन का.सहयोग मिला उनके हम प्रभारी है।