Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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में
है जो सद् १४९१ में इसी नगर लिखी गई थी। भट्टारक सकलकीति के गुरु भट्टारक नदि का मुख्य स्थान था और लकति नेपाठ वर्ष यहीं रह कर उनसे शिक्षा प्राप्त की थी। भट्टारक पचनधि द्वारा प्रतिष्ठापित सं १४०० की दिन प्रतिमायें टॉक के बाहर जैन नक्षियां में विराजमान हैं। इसी तरह सन् १७१६ कवि ने भद्रबाहुचरित की वहीं बैठ कर रचना की थी लेकिन वर्तमान में प्रीत के महत्व को देखते हुए यहां कोई अच्छा संग्रह नहीं है। यहां तीन जैन मन्दिर हैं और इन तीनों में करीब २२० हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह है । लेकिन यहां पर प्रतिलिपि किये हुए ग्रंथ श्राज भी बूंदी, कोटा, दबलाना, इन्दरगढ़, आमेर, इससे यहां की साहित्यिक गतिविधियों का सहज एवं सिद्धचकथा की प्राचीन पालियां जयपुर के मद में सुरक्षित है। इसी तरह मन्त्रि भाषा (२०१६) त्रिवाको मायाकिशनसिंह (सन् १७५७ ) पार्श्वपुराण भूधरदास (संवत् १८०६ ) समयसार नाटक- बनारसीदास (सन् १८४१ ) आदि कुछ ऐसी पाण्डुलिपिया है जिनका लेखन इसी नगर में हुआ था।
जयपुर, भरतपुर एवं कामों के भण्डारों में उपलब्ध होते हैं। ही में पता चल जाता है
शास्त्र भण्डार दि० जैन बघेरवाल मंदिर
यह यहां का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मन्दिर है जिसके शास्त्र भण्डार में १०४ हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह है। सभी सामान्य विषयों से सम्बन्धित हैं। इसी भण्डार में एक गुटका भी है जिसमें हिन्दी की कितनी ही अज्ञात रचनाओं का संग्रह है। कुछ रचनायों के नाम निम्न प्रकार है
सारसीखामणिराम
नेमिराजमतिगीत पचेद्रियगीत
नेमिराजमति बेलि
पंगग्य गीत
(
इस मन्दिर में कोई
सम्बन्धित है।
भट्टारक सकलकीवि
ब्रह्म यशोधर
जिनसेन
सिंहदास
महा मणोपर
शास्त्र भण्डार वि० जैन तेरापंथी मन्दिर
१५ वीं शताब्दी
१६ वी शताब्दी
इस शास्त्र भण्डार में दुग्गल, पूजा, कथा एवं चरित सम्बन्धी रचनाओं का संग्रह मिलता है। भट्टारक कीर्ति के शिष्य श्री लालचन्द द्वारा निर्मित सम्मेदशिखर पूजा की एक प्रति है जो सं १८४२ में देवदा नगर में छन्दोबद्ध की गयी थी। वहां तीन मन्त्र हैं जो कपड़े पर लिखे हुए हैं। ऋपिमंडल मंत्र संवत् १५८५ का लिखा हुआ है तथा २२४२३ इन्कार का है। मंत्र पर दी हुई प्रति निम्न प्रकार है
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श्री श्री श्री मद्रसूरिभ्यो नमः संवत्सरेस्मद् [श्री नृपविक्रमादित्य गताः सं १५८५ वर्षे कातिक बंदी ३ शुभ दिने श्री रिषीमंडल यंत्र ब्रह्म० ग्रहसित विष्य पं० गजमल्लेन मिति ग्रंथ भवतु वृहद् सिद्धचक यंत्र का लेखन काल संवत् १६१९ है और धर्मचक यंत्र का लेखन काल संवत् १६०४ है।
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ग्रंथ भण्डार दि जैन अग्रवाल मन्दिर नहीं है। केवल
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दिया है जो पुराल एवं कथा से