Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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( इक्रीस )
ब्रह्म बावनी (१४५७)
बह्म नाबनी एक प्राध्यात्मिक कृति है। इसके कवि निहालचन्द है जो संभवतः बंगाल में किसी कार्यवश गमे थे और वहीं मामूदाबाद में उन्होंने इसकी रचना की थी। वैसे कधि कानपुर के पास की छावनी में रहते थे इनकी एक मोर कृति नयचक्रभाषा प्रस्तुस सूची के २३३४ संख्या पर पायी है जिसमें कवि ने अपना संक्षिप्त परिचय दिया है। नयचकभाषा संवत् १५६७ की कृति है इसलिने ब्रा बायनी इसके पूर्व की रचना होनी चाहिये पोंकि उन्होंने उसे धैर्य के साथ बैट कर लिखने का उल्लेख किया है। बावनी एक लघुकृति है लेकिन आध्यात्मिक रस में ओत प्रोत है।
१० मुक्ति स्वयंबर (१५३६)
मुत्तिः स्त्रयंबर एक रूपक काव्य है जिसमें मोन टपी लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये स्वयंबर रचे जाने का रूपक बांधा गया है। यह रचना काफी बड़ी है तथा ३१८ पृष्ठों में समाप्त होती है । रूपककार वेणीचन्द कवि है जिन्होंने इसे लश्कर में प्रारम्भ किया था और जिसको समाप्ति इन्दौर नगर में हुई थी। वैसे कवि ने अपने को फलटन का निवासी लिस्था है और मलूकचन्द का पुत्र बतलाया हैं । रूपक काव्यं का रचना काल संवत् १९३४ है। इस प्रकार ऋवि ने हिन्दी न रूक काथ्यों की परम्परा में अपनी एक रचना और जोड़ कर उसके विकास में योग दिया है। ११ वसुमन्दि श्रावकाचार भाषा (१६६४)
वमुनन्दि श्रावकाचार पर प्रस्तुत भाषा वधनिका ऋषमदास कृत है जो झामरापाटन (राजस्थान) के निवासी थे । कवि हूंम जाति के आबक थे । इनके पिता का नाम नाभिदास था । इस ग्रन्थ की रचना करने में पामेर के मट्टारक देवेन्द्र कीत्ति की प्रेरणा का कवि ने उल्लेख किया है । भाषा टीका विस्तृत है जो ३४७ पृष्ठों में पुगों होती है । इसका रचनाकल संवत १९०७ है, जिसका उल्लेख निम्न प्रकार हमार है
ऋषि पुग्ण नव एक पुनि, माघ पूनि शुम श्वेत ।
जया प्रथा प्रथम कुजवार, मम मंगल होय निकेत ॥ कवि ने झालरापाटन स्थित गांतिनाथ स्वामी तथा पार्श्वनाय एवं ऋषभदेव के मन्दिरका भी उल्लेख किया है।
१२ श्रावकाचार रास (१७०२)
पदमा कवि ने श्रावकाचार रास की रचना कब की थी उसने इसका कोई उल्लेख नहीं किया है । इसमें पद्यात्मक रूप से श्राबक धर्म का वर्णन किया गया है । रास भाषा, पीली एवं विषय वर्णन की दृष्टि से उत्तम कृति है । इसकी एक अपूर्ण प्रति दि जैन मन्दिर कोटा के शास्त्र मण्डार में संग्रहीत है।
१३ सुख विलास (१७६१)
जोधराज कासलीवाल हिन्दी के प्रसिद्ध महाकवि दौलतराम कासलीवाल के सुपुत्र थे। अपने पिता के सामम ही जोपराब भी हिन्दी के अच्छे कवि थे । सुख विलास में कवि की रचनाओं का संकलन है । उनका यह