Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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( ग्यारह )
हैं। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि सेवाराम पाटनी इसी नगर के थे। उनके द्वारा रचित मरिसमाषचरित की मूल पापडुलिपि इसी भण्डार में सुरक्षित है इस चरित काव्य का रचना काल संवत् १५५० है ।
शास्त्र भण्डार वि० जैन बड़ा पंचायती मन्दिर डोग इस मन्दिर में पहिले हस्तलिखित ग्रयों का अच्छा संग्रह था। लेकिन मन्दिर के प्रबन्धकों की इस भोर उदासीनता के कारण अधिकांश संग्रह सदा के लिये समाप्त हो गया। वर्तमान में यहाँ ५६ मथ तो पूर्ण एवं प्रच्छी स्थिति में है और शेष अपरणं एवं टित दशा में संग्रहीत है। भण्डार में भगवती प्राराधना मी सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि है । जिसका लेखन काल संवत् १५११ बैशाख शुक्ला सप्तमी है । इसकी प्रतिलिपि मांडलगढ़ में महाराणा कुभकरणं के शासन काल में हुई थी। इसके अतिरिक्त राजहंस के षट्दर्शन समुच्चय, अपभ्रंश कान्य भविसयत्त चरिउ (श्रीधर), प्रास्मा नृशासन (गुण भद्र) एवं सकलकीति के जम्बुस्वामी चरित की भी अच्छी पाण्डुलिपियां हैं।
शा त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर पुरानो डोग
पुरानी डीग का दि जैन मन्दिर अत्यधिक प्राचीन है और ऐसा मालूम देता है कि इसका निर्माण १४ वीं सताब्दी पूर्वही हो चुका होगा । मन्दिर की प्राचीनता को देखते हुए यहाँ अच्छा शास्त्र भण्डार होना चाहिए लेकिन नयी झीग एवं भरतपुर बनने के पश्चात् यहां से बहुत से अथ इधर उधर चले गये। वीमान में यहां के भण्डार में हस्तलिखित ग्रंथों की संख्या १७१ है लेकिन वे भी अच्छी तरह रखे हुए नहीं है । भण्डार के अधिकांश ग्रंथ हिन्दी माषा के हैं। नथमल कहि ने जिण गुणविलास (रचना काच सं. १८६५) की एक पाण्डुलिपि यहां संवद १८६६ की लिली हुई है। मुकुन्ददास कवि के म्रमरगीत की पागडुलिपि भी उल्लेखनीय हैं। कवि चुन्नीलाल की चौबीस तीर्थकर पूजा को पाण्डुलिपि इस भण्डार में सर्व प्रथम उपलब्ध हुई है। पूजा का रचना काल संवत् १९१४ है। इसकी रचना करोली में हुई थी। इसी भण्डार में खुशाल चन्द्र काला की जन्म पत्री की प्रति भी संग्रहीत है ।
शास्त्र भण्डार दि० जैन खण्डेलवाल मन्दिर कामा
राजस्थान के प्राचीन नगरों में कामा नगर का भी नाम लिया जाता है। पहिले यह भरसपुर राज्य का प्रसिद्ध नगर था लेकिन प्राअकल राहसील का प्रधान कार्यालय है । उक्त मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संगहीत ग्रयों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि यह नगर १५-१६ वीं शताब्दी में साहित्यक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रहा ! हिन्दी के प्रसिद्ध महाकवि दौलतराम कासलीवाल के सुपुत्र जोत्रराज कासलीवाल यहां प्राकर रहने लगे थे जिन्होंने संवत् १८८४ में सुखबिलाम की रचना की थी। इसी तरह इनसे भी पूर्व पंचास्तिकाय एव प्रवननसार की हेमराज के हिन्दी टीका की पापडुलिपियों भी इसी भण्डार में उपलब्ध होती है।
भण्डार में गुटकों सहित ५७८ पाण्डुलिपियां उपलब्ध होती हैं । ये पाण्डुलिपियां संस्कृत, प्राकृत अपभ्रश, हिन्दी, अज एवं राजस्थानी भाषा से सम्बधित रचनायें हैं। यह भण्डार महत्वपूर्ण एवं प्रज्ञात तथा प्राचीन पाण्डलिपियों की दृषि से राजस्थान के प्रमख भण्डारों में से है। कामा नगर और फिर यह शास्त्र भन्डार साहित्यिक गतिविधियों का बड़ा भारी केन्द्र रहा। आगरा के पश्चात् और सांगानेर एवं जयपुर के पूर्व कामा में ही एक अच्छा संग्रहालय या । जहां विद्वानों का समादर था इसलिए भण्डार में संवत् १४०५ तक की पाण्डलिपियां मिलती है । यहां की कुछ महत्वपूर्ण पाण्डुलिपिया के नाम निम्न प्रकार है