Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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। सोलह )
शास्त्र मण्डार वि० जैन पंचायती मंदिर बसका
इसी तरह यहां का पंचायती मंदिर पुराना मंदिर है जिसमें १२ वीं शताब्दी की एक विशाल जिन प्रतिमा है। यहाँ कल्पसूत्र की दो पाण्डुलिपियां है जो स्त्र क्षरी हैं तथा सार्थक हैं। इनमें एक में ३६ चित्र तथा दूसरे में ४२ चित्र है। दोनों ही प्रलियो संवत् १: १५२८ की लिखी गई है। गायनन्ति महाकाव्य की एक सटीक प्रति हैं जिसके टीकाकार प्रहलाद हैं। इस प्रकी प्रतिलिपि संवत १७६८ में बसबा में ही हुई थी। महाकवि श्रीधर को अपभ्रंश कृति भविसयत चरिउ की संवत् १४६२ की पाण्डुलिपि एवं समयसार की तात्पर्यवृत्ति को संवत् १४४० की पाण्डविपि उल्लेखनीय है। प्राचीन काल में यह भण्डार और महत्वपूर्ण रहा होगा ऐसी पूर्ण संभावना है।
शास्त्र भण्डार दि. जैन मन्दिर भावना
भादवा फुलेरा तहसील का एक छोटा सा ग्राम है। पश्चिमी रेल्वे की रिवाडी फुलेरा ब्रांच लाइन पर भैसलाना स्देशन है। जहां से यह ग्राम तीन मोल दूरी पर स्थित है। जैन दर्शन के प्रकापड बिद्धान स्व. पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ का जन्म यहीं हमा था। यहां के दि० जैन मन्दिर में एक शास्त्र है जिसमें १५० से अधिक हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह है।
शास्त्र भण्डार में हिन्दी कृतियों की अच्छी संख्या है। इनमें धामतराय का धर्म विलास, भैय्या भगवतीदास का 'ब्रह्म विलास' तथा श्रमदास का 'श्रावकाचार' के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। गुटकों में भी छोटी छोटी हिन्दी कृतियों का अच्छा संग्रह है।
शारत्र भण्डार दि. जैन मन्दिर डूगरपुर
डूंगरपुर नगर प्रारम्भ से ही जन साहित्य एवं संस्कृति का केन्द्र रहा । १५ वीं शताब्दी में अब से भट्टारक सकल कीति ने यहां अपनी गादी की स्थापना की, उसी समय से यह नगर २-३ शताब्दियों तक भट्टारकों एवं समारोहों का केन्द्र रहा । संवा १४८२ में यहां एक भव्य समारोह में सकलकीति को मारक के प्रत्यन्त सम्माननीय पद की दीक्षा दी गयी।
घऊदय व्यासीय संवति कुल दीपक नरपाल संधपति । हूंगरपुर दीक्षा महोछव तोरिए कीया ए। श्री सकलकीति सह गुरि सुकरि दीधी दीक्षा पाणंदभरि ।
जय जय कार सपलि सचराचर गणधार ।। म. सकलकोति के पश्चात यहां भुवनकीति, शानभूषरण. विजयकोति एवं शुभचन्द जैसे महान व्यक्तित्व के धनी भट्टारकों का यहां सम्मेलन रहा और इस प्रकार २०० वर्षों तक यह नगर जैन समाज की गतिविधियों का केन्द्र रहा । इसलिए नगरके महत्व को देखते हुए वर्तमान में जो यहां शास्त्र भण्डार है वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। यहां का शहर मंण्डार दि. जैन कोटडिया मन्दिर में स्थापित किया हपा है जिसमें हस्तलिखित प्रथों की संख्या ५५३ है। जिनमें चन्दनमलयगिरि कथा, आदित्यवार कथा, एवं राग रागनियों की सचित्र पाण्डुलिपियों है । इसी मण्डार में ब. जिनदास कृत रामरास को पाण्डुलिपि है जो प्रत्यधिक महत्वपूर्ण हैं | इसके