Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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प्रस्तावना
राजस्थान एक विशाल प्रदेश है। इसकी यह विशालता केवल क्षेत्रफल की दृष्टि से ही नहीं है किन्तु साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी राजस्थान की गणना सर्वोपरि है । जिस प्रकार यहां के वीर शासकों एवं योद्धाओं ने अपने बहादुरी के कार्यों से देश के इतिहास को नयी दिशा प्रदान करने में महत्वपू योग दिया है उसी प्रकार यहां के साहित्य सेवी समूचे भारत का गौरवमय वातावरण बनाने में सक्षम रहे हैं । यहां की संस्कृति भारत की आत्मा है जो अहिता, सहअस्तित्वं एवं समन्वय की भावना से प्रोतप्रोत है। यही कारण है कि इस प्रदेश में युद्ध के समय में भी शांति रही और सभी वर्ग भारतीय संस्कृति के विकास में अपना अपना योग देते रहे। भारतीय साहित्य के विकास में, उसको सुरक्षा एवं प्रचार प्रसार में राजस्थानवासियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। संस्कृत भाषा के साथ-साथ यहां के निवासियों ने प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी एवं गुजराती के विकास में मी सर्वाधिक योग दिया। राजस्थानी यहां की जन भाषा रही और उसके माध्यम से "हिन्दी का खून विकास हुया । इसीलिये हिन्दी के प्राचीनतम कवियों की कृतियां यहीं के ग्रंथागारों में उपलब्ध होती हैं । यही स्थिति अन्य भाषाओं के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है।
साहित्यिक प्रेम की जितनी भी प्रशंसा की जावे वही कम रहेगी। निर्माण के साथ साथ उसकी सुरक्षा की प्रोर भी ध्यान दिया और का संग्रह कर लिया। मुसलिम शासन काल में जिस प्रकार उन्होंने अधिक प्रिय समझ कर सुरक्षित रखा वह ग्रांज एक कहानी बन गयी है। यहां के शासक एवं जनता दोनों ने ही
राजस्थान के शास्त्र भण्डारों का यदि मूल्यांकन किया जाये तो हमारे पूर्वजों की बुद्धिमत्ता एवं उनके उन्होंने समय की गति को पहिचाना, साहित्य धीरे-धीरे लाखों की संख्या में पाण्डुलिपियों साहित्यिक धरोहर को अपने प्राणों से भी
इसलिये यहां के शासकों ने जश ने अपने-अपने मन्त्रिरों
मिल कर अथक प्रयासों से साहित्य की प्रमूल्य निधि को नष्ट होने से बचा लिया । जहां राज्य स्तर पर ग्रंथ संग्रहालयों एवं पोचीखानों की स्थापना की, वहां यहां की जर एवं निवास स्थानों पर भी पाण्डुलिपियों का अपूर्व सग्रह किया। बीकानेर की अनूप संस्कृत लायब्रेरी एवं जयपुर का जिस प्रकार प्राचीन पाण्डुलिपियों के संग्रह के लिये विश्वविख्यात हैं उसी प्रकार नागोर, जैसलमेर, अजमेर, श्रमेर, बीकानेर एवं उदयपुर के जैन ग्रंथालय भी हम दृष्टि से सर्वोपरि हैं। एद्यपि अभी तक विद्वानों द्वारा इन शास्त्र भण्डारों का पूर्णतः मूल्यांकन नहीं हो सका हैं फिर भी गत २० वर्षो में इन संग्रहालयों की जो सुचियां सामने आयी हैं उनसे विद्वान इस ओर आकृष्ट होने लगे हैं और अब शनैः शनैः इनमें संग्रहीत
साहित्य का उपयोग होने लगा है ।
जनता द्वारा स्थापित राजस्थान के इन शास्त्र भण्डारों में जैन शास्त्र भण्डारों की सबसे बड़ी संख्या है। ये शास्त्र भण्डार राजस्थान के सभी प्रमुख नगरों एवं कस्बों में मिलते हैं। यद्यपि अभी तक इन शास्त्र austi की पूरी सूची तैयार नहीं हो सकी है। मैंने अपने Jain Granth Bhandars in Rajasthan में ऐसे १०० शास्त्र भण्डारों का परिचय दिया है लेकिन उसके पश्चात् और भी कितने ही यथागारों का