Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 13
________________ (=) इसके अतिरिक्त जो लेखक प्रशस्तियां अधिक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण थी उन्हें भी ग्रन्थ सूची में दे दिया गया है । इस प्रकार सूची में १०६ मन्थ प्रशास्तियां एवं ५५ लेखक प्रशस्तियां दी गयी हैं जो स्वयं एक पुस्तक के रूप में हैं। प्रस्तुत सूची में एक और नवीन ढंग अपनाया गया है वह यह है कि अधिकांश प्रन्थों की एक प्रति का ही सूची में परिचय दिया गया है। यदि उस मन्थ की एक से अधिक प्रतियाँ हैं तो विशेष में उनकी संख्या को ही लिख दिया गया है लेकिन यदि दूसरी प्रति भी महत्वपूर्ण अथवा विशेष प्राचीन है तो उस प्रति का भी परिचय सूची में दे दिया गया है। इस प्रकार करीब ५०० प्रतियों का परिचय ग्रन्थ-सूची में नहीं दिया गया जो विशेष महत्त्वपूर्ण प्रतियां नहीं थी । कुछ विद्वानों का यह मत है कि प्रत्येक भण्डार की मन्थ सूची न होकर एक सूची में १०-१५ भरडारों की सूची हो तथा एक ग्रन्थ किस किस भण्डार में मिलता है इतना मात्र उसमें दे दिया जावे जिससे प्रकाशन का कार्य भी जल्दी हो सके तथा भण्डारों की सूचियां भी आजावें । हमने इस शैली को अभी इसीलिये नहीं अपनाया कि इससे भण्डारों का जो भिन्न भिन्न महत्य है तथा उनमें जो महत्त्वपूर्ण प्रतियां हैं उनका परिचय ऐसी प्रन्थ सूची में नहीं आसकेगा। यह तो अवश्य है कि बहुत से ग्रन्थ तो प्रत्येक भण्डार में समान रूप से मिलते हैं तथा प्रन्थ सूचियों में बार बार में आते हैं जिससे कोई विशेष अर्थ प्राप्त नहीं होता । आशा है भविष्य में सूची प्रकाशन का यह कार्य किस दिशा में चलना चाहिये इस पर इस सम्बन्ध के विशेषज्ञ विद्वान् अपनी अमूल्य परामर्श से हमें सूचित करेंगे जिससे यदि अधिक लाभ हो सके तो उसी के अनुसार कार्य किया जा सके । प्रन्थ सूची बनाने का कार्य कितना जटिल है यह तो वे ही जान सकते हैं जिन्होंने इस दिशा में कार्य किया हो | इसलिये कमियां रहना आवश्यक हो जाता है। कौनसा ग्रन्थ पहिले प्रकाश में आ चुका है तथा कौनसा नवीन है इसका भी निर्णय इस सम्बन्ध की प्रकाशित पुस्तकें न मिलने के कारण जल्दी से नहीं किया जा सकता इससे यहू होता है कि कभी कभी प्रकाश में आये हुये प्रन्थ नवीन समझने की गल्ती हो जाया करती है । प्रस्तुत ग्रंथ सूची में यदि ऐसी कोई अशुद्धि हो गयी हो तो विद्वान् पाठक हमें सूचित करने का कष्ट करेंगे | दोनों भण्डारों में जो महत्त्वपूर्ण कृतियां प्राप्त हुई है उनके निर्माण करने वाले विद्वानों का परिचय भी यहां दिया जा रहा है। यद्यपि इनमें से बहुत से विद्वानों के सम्बन्ध में तो हम पहिले से हो जानते हैं किन्तु उनकी जो अभी नवीन रचनायें मिली हैं उन्हीं रचनाओं के आधार पर उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है। आशा है इस परिचय से हिन्दी साहित्य के इतिहास निर्माण में कुछ सहायता मिल सकेगी।

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