Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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( ६ ) दोहा; समयसुन्दर का प्रात्मउपदेशगीत, समाबत्तीसी एवं दानशीलसंवाद; सुखदेव कृत वणिकप्रिया, (१७१७) हर्षकीति का नेमिनाथराजुलगीत, नमीश्वरगीत, एवं मोरडा; अजयराज कृत नेमिनाथचरित ( १७६३ ) एवं यशोधर चौपई (१७६२); कनककीति का मेघफुमारगीत, गोपालदास का प्रमाडीगीत एवं यदुरासो; थानसिंह का रत्नकरण्ड श्रावकाचार एवं सुबुद्धिप्रकाश (1) पादूदयाल के दोई, दूसर कवि का कविलाठाभरणः नगरीदास का इश्कचिमन; एवं वैनविलास, वंशीधर कृत दस्तूरमालिका; भगवानदास के पद; मनराम द्वारा रचित अक्षरमाला, मनरामविलास, एवं धर्मसहेली; मुनि महेस की अक्षरबत्तीसी, रघुनाथ का गणभेद, शानसार, नित्यविहार एवं प्रसंगसार, श्रुतसागर का षटमालवर्णन (१८२१ ); हेमराज कृत दोहाशतक; केशरीसिंह का बर्द्धमानपुराण (१८७३) चंपाराम का धर्मप्रश्नोत्तरश्रावकाचार, एवं भद्रबाटुचरित्र, पाषा दुलीचन्द कृत धर्मपरीक्षा भाषा आदि उल्लेखनीय है । ये रचनायें काव्य, पुराण, चरित, नाटक, रस एवं अलंकार अर्थशास्त्र, इतिहास आदि सभी विषयों से सम्बन्धित हैं । इनमें से यहुत सी तो ऐसी रचनायें हैं । जो सम्भवतः सर्व प्रथम विद्वानों के समक्ष आयी होंगी। मचित्र साहित्य
दोनों भण्डारों में हिन्दी एवं अपभ्रंश का महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध होते हुये सचित्र साहित्य का न मिलना जैन श्रावकों एवं विद्वानों की इस ओर उदासीनता प्रगट करती है। किन्तु फिर भी ठोलियों के मन्दिर में एक पूजा संग्रह प्राप्त हुआ है जो सचित्र है। इसमें पूजा के विधानों के मंडल चित्रित किये हुये है। चित्र सभी रंगीन है एवं कला पूर्ण भी है । इसी प्रकार एक शस्त्र के पुट्टे पर चौबीस तीर्थकरों के चित्र दिये हुये हैं। सभी रंगीन एवं कला पूर्ण हैं । यह पुट्ठा १६ वीं शताब्दी का प्रतीत होता है। विद्वानों द्वारा लिखे हुये ग्रन्थ
इस दृष्टि से वधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार उल्लेखनीय है। यहाँ पर महा पंडित टोडरमलजी द्वारा लिग्नित मोक्षमार्गप्रकाश एवं आत्मानुशासन भाषा एवं गोमटुसार भाषा की प्रतियां सुरक्षित हैं । ये प्रतियां साहित्यिक दृष्टि से नहीं किन्तु इतिहास एवं पुरातत्त्व की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। विशाल पद साहित्य-~
दोनों भण्डारों के गुटको में हिन्दी कवियों द्वारा रचित पदों का विशाल संग्रह है । इन कयियों की संख्या ६० है जिनमें कबीरदास, वृन्द, मुन्दर, सूरदास श्रादि कुछ कवियों के अतिरिक्त शेष सभी जैन कवि हैं। इनमें अजयराज, छीहल, जगजीवन, जगतराम, मनराम, रूपचन्द, हर्षकीत्ति आदि के नाम उल्लेखनीय है । इन कवियों द्वारा रचित हिन्दी पद भाषा एवं माय की दृष्टि से अच्छे हैं तथा जिनका प्रकाश में श्राना आवश्यक है। क्षेत्र के अनुसन्धान विभाग की ओर से ऐसे पद एवं भजनों का संग्रह