Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 7
________________ श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः । भवन्ति ] है । कैसे हैं वे पंचास्तिकाय ? [यै] जिनकेद्वारा [त्रैलोक्यं ] तीन लोक [निष्पन्नं] उत्पन्न हुये हैं। भावार्थ-इन पंचास्तिकायनिको नानाप्रकारके गुणपर्यायके स्वरूपसे भेद नहीं है, एकता है । पदार्थोंमें अनेक अवस्थारूप जो परिणमन है, वे पर्यायें कहलाती हैं. और पदार्थमें सदा अविनाशी साथ रहते हैं, वे गुण कहे जाते हैं । इस कारण एक वस्तु एक पर्यायकर उपजती है, और एक पर्यायकर नष्ट होती है, और गुणोंकर ध्रौव्य है. यह उत्पादव्ययध्रौव्यरूप वस्तुका अस्तित्वस्वरूप जानना, और जो गुणपर्यायोंसे सर्वथा प्रकार वस्तुकी पृथकता ही दिखाई जाय तो अन्य ही विनशै, और अन्य ही उपजै, और अन्य ही ध्रुव रहै. इस प्रकार होनेसे वस्तुका अभाव होजाता है. इस कारण कथंचित् साधनिका मात्र भेद है. स्वरूपसे तो अभेदही है । इस प्रकार पंचास्तिकायका अस्तित्व है । इन पांचों द्रव्योंको कायत्व कैसे है, सो कहते हैं कि, जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, और आकाश ये पांच पदार्थ अंशरूप अनेक प्रदेशोंको लिये हुये हैं। वे ___ प्रदेश परस्पर अंश कल्पनाकी अपेक्षा जुदे जुदे हैं. इस कारण इनका भी नाम पर्याय है, अर्थात् उन पांचों द्रव्योंकी उन प्रदेशोंसे स्वरूपमें एकता है, भेद नहीं है अखंड है, इस कारण इन पांचों द्रव्योंको कायवंत कहा गया है । ___ यहां कोई प्रश्न करै कि, पुद्गल परमाणु तो अप्रदेश हैं, निरंश हैं, इनको कायत्व कैसे होय ! तिसका उत्तर यह है किः-पुद्गल परमाणुवोंमें मिलनशक्ति है, स्कन्धरूप होते हैं इस कारण सकाय हैं. इस जगह कोई यह आशंका मत करो कि, पुद्गल द्रव्य मूर्तीक है, इसमें अंशकल्पना वनती है; और जो जीव, धर्म, अधर्म, आकाश ये ४ द्रव्य हैं सो अमूर्तीक हैं, और अखंड हैं; इनमें अंशकथन वनता नहीं, पुद्गल में ही बनता है। मूर्तीक पदार्थको कायकी सिद्धि होय है, इस कारण इन चारोंको अंशकल्पना मत कहो, क्योंकि अमूर्त अखंड वस्तुमें भी प्रत्यक्ष अंशकथन देखनेमें आता है: यह घटाकाश है, यह घटाकाश नहीं है, इस प्रकार आकाशमें भी अंशकथन होता है । इस कारण कालद्रव्यके विना अन्य पांच द्रव्योंको अंशकथन और कायत्वकथन किया गया है. इन पंचास्तिकायोंसे ही तीन लोककी रचना हुई है. इन ही पांचों द्रव्योंके उत्पादव्ययध्रौव्यरूप भाव त्रैलोक्यकी रचनारूप हैं। धर्म,अधर्म, आकाशका परिणमन ऊर्ध्वलोक, अधोलोक,मध्यलोक, इस प्रकार तीन भेद लिये हुये हैं। इस कारण इन तीनों द्रव्योंमें कायकथन, अंशकथन है; और जीवद्रव्य भी दण्ड कंपाट प्रतर पूर्ण अवस्थावोंमें लोकप्रमाण होता है. इस कारण जीवमें भी सकाय वा अंशकथन है । पुद्गलद्रव्यमें मिलनशक्ति है, इस कारण व्यक्तरूपमहास्कन्धकी अपेक्षासे ऊर्ध्वलोक, अधोलोक, मध्यलोक इन तीनो लोकरूप परिणमता है. इस कारण अंशकथन पुद्गलमें भी सिद्ध होता है । इन पंचास्तिकायोंकेद्वारा लोककी सिद्धि, इसी प्रकार है।Page Navigation
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