Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् आकाशद्रव्य, इन द्रव्योंके विशेष नाम सार्थक पंचास्तिकाय जानना. [अस्तित्वे च] और पंचास्तिकाय अपने सामान्य विशेष अस्तित्वमें [नियताः] निश्चित हैं, और [अनन्यमयाः ] अपनी सत्तासे भिन्न नहीं हैं । अर्थात्-जो उत्पादव्ययध्रौव्यरूप हैं सो सत्ता है, और जो सत्ता है सो ही अस्तित्व कहा जाता है । वह अस्तित्व सामान्यविशेषात्मक है। ये पंचास्तिकाय अपने अपने अस्तित्वमें है. अस्तित्व है सो अभेदरूप है. ऐसा नहीं है, जैसेंकि किसी वर्तनमें कोई वस्तु हो, किन्तु जैसे घटपटरूप होता है, वा अग्नि उप्णता एक है। जिनेन्द्र भगवान्ने दो नय बताये हैं:एक द्रव्यार्थिकनय, और दूसरा पर्यायार्थिकनय है । इन दो नयोंके आश्रय ही कथन है । यदि इनमेंसे एक नय न हो तो तत्त्व कहे नहिं जायँ, इस कारण अस्तित्व गुण होनेके कारण द्रव्यार्थिकनयसे द्रव्यमें अभेद है. पर्यायाथिकनयसे भेद है. जैसे गुण गुणीमें होता है. इस कारण अस्तित्व विषै तो ये पंचास्तिकाय वस्तुसे अभिन्नही हैं। फिर पंचास्तिकाय कैसे हैं कि, [अणुमहान्तः] निर्विभाग मूर्तीक अमूर्तीक प्रदेशन कर बडे है, अनेक प्रदेशी हैं। भावार्थ-ये जो पहिले पांच द्रव्य अस्तित्वरूप कहे वे कायवन्त भी हैं, क्योंकि ये सब ही अनेक प्रदेशी हैं । एक जीवद्रव्य, और धर्म, अधर्मद्रव्य ये तीनों ही असंख्यात प्रदेशी हैं । आकाश अनंत प्रदेशी है । वहु प्रदेशीको काय कहा गया है । इस कारण ये ४ द्रव्य तो अखण्ड कायवन्त हैं । पुद्गलद्रव्य यद्यपि परमाणुरूप एक प्रदेशी है, तथापि मिलन शक्ति है, इस कारण काय कहिये है. व्यणुक स्कन्धसे लेकर अनन्त परमाणुस्कंध पर्यन्त व्यक्तिरूप पुद्गल कायवन्त कहा जाता है, इस कारण पुद्गलसहित ये पांचों ही अस्तिकाय जानने । कालद्रव्य (कालाणु) एक प्रदेशी है, शक्तिव्यक्तिकी(?) अपेक्षासे कालाणुवोंमें मिलन शक्ति नहीं है, इस कारण कालद्रव्य कायवन्त नहीं है । आगे पंचास्तिकायके अस्तित्वका स्वरूप दिखाते हैं, और काय किस प्रकारसे है सो भी दिखाया जाता है: जेसिं अत्थिसहाओ गुणेहिं सह पन्ज एहिं विविहेहिं । जे होंति अत्थिकाया णिप्पण्णं जेहिं तइलुकं ॥५॥ संस्कृतछाया. येपामस्तिस्वभावः गुणैः सह पर्यायैर्विविधैः । ते भवन्त्यरितकायाः निप्पन्नं यैस्त्रैलोक्यम् ।। ५ ।। पदार्थ-[येपां] जिन पंचास्तिकायोंका [विविधैः] नाना प्रकारके [गुणः] सहभृतगुण और [पर्यायः] व्यतिरेकरूप अनेक पर्यायोंके [सह] सहित [अस्तिस्वभावः] अस्तित्वस्वभाव है [ते] वे ही पंचास्तिकाय [अस्तिकायाः] अस्तिकायवालेPage Navigation
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