Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् भनको हरते हैं, इस कारण अतिशय मिष्ट (प्रिय) हैं, और वे ही बचन निर्मल हैं, क्योंकि जिन वचनोंमें संशय, विमोह विभ्रम, ये तीन दोष वा पूर्वापर विरोधरूपी दोष नहिं लगते हैं; इसकारण निर्मल हैं । ये ही (जिनेन्द्र भगवान्के अनेकान्तरूप) वचन समस्त वस्तुवोंवे स्वरूपको यथार्थ दिखाते हैं; इसकारण प्रमाणभूत हैं; और जो अनुभवी पुरुप हैं, वे ही इन वचनोंको अंगीकार करनेके पात्र हैं। फिर कैसे हैं जिन ? [अन्तातीतगुणेभ्यः] कहिरे अन्तरहित हैं गुणे जिनके, अर्थात् क्षेत्रकर तथा कालकर जिनकी मर्यादा (अन्त) नहीं ऐसे परम चैतन्य शक्तिरूप समस्त वस्तुवोंको प्रकाश करनेवाले अनन्तज्ञान अनन्त दर्श नादि गुणोंका अन्त (पार) नहीं है । फिर कैसे हैं जिन ? [जितभवेभ्यः] जीता है पंचपरावर्तनरूप अनादि संसार जिन्होंने, अर्थात्-जो कुछ करना था सो करलिया, संसारसे मुक्त (पृथक् ) हुये और जो पुरुष कृतकृत्य दशाको (मोक्षावस्थाको) प्राप्त नहिं हुये उन पुरुषोंको शरणरूप हैं. ऐसे जो जिन हैं, तिनको नमस्कार होहु ॥ ___ आगे आचार्यवर जिनागमको नमस्कार करके पंचास्तिकायरूप समयसार ग्रंथके कह. नेकी प्रति करते हैं। समणमुहुरगाह चदुग्गदिणिवारणं सणिव्वाणं । एसो पणमिय सिरसा समयभियं सुणह वोच्छामि ॥२॥ संस्कृतछाया. श्रमणमुखोद्गतार्थ चतुर्गतिनिवारणं सनिर्वाणं । एप प्रणम्य शिरसा समयमिमं शृणुत वक्ष्यामि ।। २ ॥ पदार्थ-[अहं इमं समयं वक्ष्यामि ] मैं कुंदकुंदाचार्य जो हूं सो इस पंचास्तिकायरूप समयसार नामक ग्रन्थको कहूंगा. [एप शृणुत] इसको तुम सुनो. क्या करके कहूंगा? [श्रमणमुखोद्गतार्थ शिरसा प्रणम्य ] श्रमण कहिये सर्वज्ञ वीतरागदेव मुनिके मुखसे उत्पन्न हुये पदार्थसमूहसहित वचन, तिनको मस्तकसे प्रणाम करके कहूंगा, क्योंकि सर्वज्ञके वचन ही प्रमाणभूत हैं, इस कारण इनके ही आगमको नमस्कार करना योग्य है, और इनका ही कथन योग्य है । कैसा है भगवत्प्रणीत आगम ? [चतुर्गतिनिवारणं] नरक, तिर्यच, मनुष्य, देव, इन चार गतियोंको निवारण करनेवाला है, अर्थात् संसारके दुःखोंका विनाश करनेवाला है। फिर कैसा है आगम ?-[सनिर्वाणं] मोक्षफलकर सहित है; अर्थात् शुद्धात्मतत्त्वकी प्राप्तिरूप मोक्षपदका परंपरायकारणरूप है. इस प्रकार भगवत्प्रणीत आगमको नमस्कार करके पंचास्तिकाय नामक समयसारको कहूंगा. ___ आगम दो प्रकारका है:-एक अर्थसमयरूप है, एक शब्दसमयरूप है. शब्दसमयरूप जो आगम है सो अनेक शब्दसमयकर कहा जाता है. अर्थसमय वह है जो भगवत्प्रणीत है ।

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 157