Book Title: Raghuvarjasa Prakasa
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ [ & ] पंचम प्रकरण ग्रन्थका अंतिम प्रकरण है । इसमें ग्रन्थाकारने एक राजस्थानी छंद विशेष निसांणीका वर्णन करते हुए इसके मुख्य बारह भेदोंके साथ इसके भेदोपभेदोंका तथा एक मात्रिक छंद कड़खाका भी वर्णन किया है । प्रकरण के प्रारम्भ में प्रथम निसांणीके लक्षणोंको देकर उदाहरणोंको प्रस्तुत किया है । फिर रामगुण- गाथा गाते हुए निसांणीके अन्य भेदोंका उत्तम रीति से वर्णन किया है । प्रकरणके अंत में कविने अपनी वंशपरम्पराका परिचय देकर ग्रंथको समाप्त किया है । स्वयम् कवि द्वारा दिए गये इस वंश-परिचयसे कविके जीवन वृत्तको जाननेमें बहुत सहायता प्राप्त होती है । ग्रन्थ रचना-काल इस ग्रन्थकी रचनाका प्रारंभ और समाप्ति सम्बन्धी स्वयं कविने अपने वंश परिचय के पश्चात् एक छप्पय कवित्त इस प्रकार दिया है जिससे पता चलता है कि यह ग्रन्थ वि. सं. १८८०की माघ शुक्ला चतुर्थी बुधवारको प्रारंभ किया गया था । कविने अपनी कुशाग्र बुद्धि और प्रौढ़ ज्ञानके सहारे वि. सं. १८८१के आश्विन शुक्ला विजयादशमी, शनिवारको ग्रंथ पूर्ण रूपसे तैयार कर लिया । ग्रन्थ-रचनाके सम्बन्ध में स्वयं कविने अपने ग्रन्थके समाप्ति प्रकरण में लिखा हैछप्पय कवित्त उदियापुर प्राथांग रांग, भीमाजळ कवरां मुकट'जवान' नीत मग जग अठार से समत वरस सियौ बुद्धवार तिथ चौथ हुवौ प्रारम्भ ग्रन्थ हद ॥ अठारै नै अकासिये, सुद प्रासोज सराहियौ । माह सुद । सनि बिजंदसमी रघुबर सुजस 'किसन' सुकवि सुभकत कियौ ॥ Jain Education International भूमिका समाप्त करने के पूर्व हम राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानके प्रति ग्राभार प्रदर्शित किए बिना नहीं रह सकते । कारण कि प्रतिष्ठान इस प्रकार के अमूल्य ग्रन्थ जो, साहित्यकी अप्राप्य निधि हैं " राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला " के अन्तर्गत प्रकाशित कर साहित्य के कलेवरको बढ़ाने में सतत प्रयत्नशील है । प्रस्तुत ग्रन्थको इस रूपमें प्रकाशित करानेका श्रेय श्रद्धेय मुनिवर श्रीजिनविजयजीको है जिन्होंने राजस्थानीके छंद शास्त्र के इस अमूल्य ग्रन्थका प्रकाशन राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला द्वारा करना स्वीकार किया । श्रीगोपालनारायणजी बहुरा, एम. ए. व श्रीपुरुषोत्तमलालजी मेनारिया, एम. ए. प्री. साहित्यरत्नका भी पूर्ण रूपसे आभार मानता हूँ कि इन्होंने समय-समय पर पुस्तक के प्रूफ संशोधन और सम्पादन- कार्य में योग दिया । राजत । नीवाजत ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 402