Book Title: Raghuvarjasa Prakasa
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ [ ७ ] राजस्थानीकी साहित्यिक गद्य-रचनाके नियम भी समझाए हैं। उनके भेदोपभेद संक्षिप्त रूपमें दिये हैं जो राजस्थानी साहित्यका ही एक मुख्य अंग है। ऐसी गद्य-रचनाओंका हिन्दी में अभाव ही है । इस प्रकरणमें चित्र-काव्यके भी उदाहरण कमलबंध, छत्रबंध आदि समझाए गये हैं। तृतीय प्रकरण में छंदोंके दूसरे भेद, वर्णवत्तोंके लक्षण व उदाहरण दिए हैं। प्रारम्भमें कविने एक अक्षरसे छब्बीस अक्षरके छंदोंके नाम छप्पय कवित्तमें गिनाए हैं। ये सब छंद संस्कृत छंद हैं-इनका स्वतंत्र उदाहरण राजस्थानी में नहीं मिलता । तत्पश्चात् क्रमशः ११७ वर्णवृत्तोंके लक्षण व उदाहरण दिये हैं। कविने अपनी अनन्य रामभक्ति प्रकट करते हुए छंदोंके उदाहरणस्वरूप रामगुणगान किया है। ग्रंथके इस चौथे प्रकरणमें राजस्थानी (डिंगल) गीतका (छंदोंका) विस्तारपूर्वक विशद् वर्णन है जो इस ग्रंथका मुख्य विषय है और साथमें डिंगल भाषाके छंदशास्त्र या लाक्षणिक ग्रन्थकी अपनी विशेषता भी है । गीत नामक छंद, उसके भेद डिंगल भाषाके कवियोंकी अपनो मौलिक देन है । ग्रन्थकारने गीतोंके वर्णनमें गीतोंके अधिकारी, गीतोंके लक्षण, गीतोंकी भाषा, गोतोंमें वैणसगाई, वैणसगाईके नियम, वैरणसगाई और अखरोट, अखरोट और वैणसगाईमें अंतर, गीतोंमें नौ उवितयाँ, गीतोंमें प्रयुक्त होने वाली जथाएं, गीत-रचनामें माने गये ग्यारह दोष एवं विभिन्न गीतोंकी रचना, नियम आदिका पूर्ण और सरल भाषामें विशद् वर्णन दिया है। राजस्थानीमें प्राप्त छंद-रचनाके लाक्षणिक ग्रन्थों में इतना विस्तारपूर्ण एवं इतने गीतोंका वर्णन किसी भी ग्रन्थमें प्राप्त नहीं होता है। प्राप्त ग्रन्थोंमें जो गीत दिये गये हैं उनकी जानकारी यहां दी जाती है १ पिंगल-सिरोमरिण- इसमें कुल तेतीस गीतोंके लक्षण व उदाहरण दिए गए हैं। २ हरि-पिंगल-इसमें प्रथम छंदोंके लक्षण दिये गये हैं। तत्पश्चात् बाईस गीतोंके भी लक्षण दिये गये हैं । इसकी रचनाका समय संवत् १७२१ है । ३ पिंगळप्रकास-इसमें केवल 'छोटा सांणोर' और उसके तीस भेदों तथा 'वडौ सांणोर' और उसके चार भेदोंका ही वर्णन है; शेष पुस्तकमें छंदोंके लक्षण हैं। १ इस प्रकरणमें राजस्थानीकी गद्य सम्बन्धी रचनायें दवावत, वनिका और वारता आदि समझाई गई हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 402