Book Title: Pravachansara Anushilan Part 03
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 5
________________ प्रवचनसार अनुशीलन प्रवचनसार अनुशीलन (भाग-३) चरणानुयोगसूचकचूलिका (गाथा २०१ से गाथा २७५ तक) मंगलाचरण (दोहा) ज्ञान-ज्ञेय को जानकर घर चारित्र महान | शिवमग की परिपूर्णता पावैं श्रद्धावान ।। आचार्य अमृतचन्द्र इस चूलिका की टीका के प्रथम वाक्य में ही लिखते हैं कि यह चूलिका दूसरे के लिए लिखी जा रही है। इससे प्रतीत होता है कि आरंभिक दो महाधिकार आचार्य कुन्दकुन्द ने स्वयं के लिए ही लिखे थे और अब यह चूलिका दूसरों के लिए लिखी जा रही है। वस्तुतः बात यह है कि चरणानुयोग का प्रकरण होने से इसमें उपदेशात्मक भाषा का प्रयोग है; जबकि पहले दो महाधिकार तत्त्वप्रतिपादक हैं; जिन्हें उत्तम पुरुष (First person) की भाषा में लिखा गया है। यह चरणानुयोग सूचक चूलिका मन्दिर के शिखर और उस पर चढ़ाये गये कलश के समान है। ज्ञानस्वभाव और ज्ञेयस्वभाव के स्वरूप का निरूपणरूपी मंदिर तो बन चुका है; अब उस पर शिखर बनाना है और उसके भी ऊपर कलश चढ़ाना है। ___ यद्यपि आचार्य अमृतचन्द्र इसे महाधिकार के रूप में स्वीकार नहीं करते, इसीकारण वे इसे चूलिका कहते हैं: पर आचार्य जयसेन इसे चारित्र महाधिकार कहते हैं। जो कुछ भी हो; पर इसमें जो विषयवस्तु है; वह अपने आप में अत्यन्त उपयोगी और अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

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