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श्रोप्रवचनसारटीका । जिस स्वरूपसे कोई पदार्थ अन्य पदार्थोंसे भिन्न करके जाना जा जासके उसको लक्षण कहते है और जिसको पृथक् करके जाना जावे वह लक्ष्य होता है । यहां द्रव्यका असली स्वरूप समझाना है उसीके लिये पहले तो एक यही लक्षण कहा है कि जो सत है वह द्रव्य है अर्थात् जो अपने अस्तित्वको सदा रखता है वह द्रव्य है इस लक्षणसे यह बताया है कि हरएक द्रव्य अपने अस्तित्व या होनेपनेको या मौजूदगीको रखनेवाला है इसकारण सदासे है व सदा चला जायगा । न कभी पैदा हुआ था और न कभी नाश होगा । यह सत्पना द्रव्यमे नहीं होता तो हम किसी जीवको बालक अवस्थासे वृद्ध अवस्था तक व उसी जीवको नर नारकादि पर्यायोमे घूमता हुआ व शुद्ध होनेका यत्न करके शुद्ध था मुक्त होकर शुद्ध अवस्थामे सदा रहता हुआ नहीं जान सक्ते। मट्टीको पिड, घड़ा, कपाल, खड, ठिकरे व चूर्ण अवन्थामे हम सदा पाते है । इस जगतमे कोई पदार्थ अकस्मात न पैदा होता है न बिलकुल विना किसी अवस्थाको उत्पन्न किये हुए नष्ट होता है जितनी भी अवस्थाए वह धारण करे उन सबमे उसकी सत्ता बनी रहती है । एक सुवर्णकी डलीको लेकर हम उसकी बालियां बनावें, बालियोको तोड़कर अंगूठिये बनावें, अगूठिगेको तोड़कर कंठी बनाने, कंठीको तोड़कर भुजवध वनावे-चाहे जितनी सूरतोंमें बदलें वह सुवर्ण अपने अस्तित्वको कभी त्याग नहीं सक्ता, यह एक दृष्टांत है इसी तरह जो जो द्रव्य जगतमे अपनी सत्ताको रखता है वह सदा ही बना रहता है । जगतमें जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल, आकाश ये छः द्रव्य है । ये सव सदासे है व सदा ही