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३४] श्रीप्रवचनसारटीका ।
विशेपार्थ-इस जगतमे भिन्न २ लक्षणको रखनेवाले चेतन अचेतन मूर्त अमूर्त अनेक पदार्थ है, उनमेंसे प्रत्येक पदार्थकी सत्ता या स्वरूपास्तित्त्व भिन्न २ है तो भी इन सबका एक अखंड सर्वव्यापक लक्षण भी है । यह लक्षण मिलाप व भिन्नताके विकल्पसे रहित अपनी २ जातिमे विरोध न पड़ने देनेवाले शुद्ध संग्रह नयसे सर्व पदार्थोमे व्यापक एक सत् रूप है या महासत्ता रूप है ऐसा वस्तु स्वभावोके संग्रहको उपदेश करनेवाले श्री वृषभनाथ भगवानने प्रगटरूपसे वर्णन किया है। इसका विस्तार यह है कि जैसे जब हम ऐसा कहें कि सर्व मुक्तात्मा है तब उससे सर्व ही सिद्धोका एक साथ ग्रहण हो जाता है । यद्यपि वे सर्व सिद्ध अपने २ शुद्ध असख्यात प्रदेशोझी अपेक्षा जो लोकाकाश प्रमाण है और परमानदमई एक लक्षणको रखनेवाले सुखामृतके रसके खादसे भरे हुए है तथा अपने २ अंतिम गरीरके आकारसे कुछ कम व्यजन पर्यायकी अपेक्षा मिश्र व भिन्नताके विकल्पसे ' रहित अपनी अपनी जातिके भेदसे भिन्न २ हैं तो भी एक सत्ता लक्षणकी अपेक्षा उन सब सिड का ग्रहण होजाता है। वैसे ही 'सर्व सत्' ऐसा कहनेपर सग्रह नयसे सर्व पदार्थोका ग्रहण हो जाता है । अथवा यह सेना है ऐसा कहनेपर अपनी २ जातिसे भिन्न घोडे, हाथी आदि पदार्थोकी भिन्नता है तो भी सबका एक कालमे ग्रहण होजाता है अथवा यह वन है ऐसा कहनेपर अपनी२ . जातिसे भिन्न निम्ब, आम्र आदि वृक्षोंकी भिन्नता है तो भी सब वृक्षोका एक कालमे ग्रह्ण हो जाता है । तैसे ही सर्व सत् ऐसा कहनेपर सादृश सत्ता या महासत्ताकी अपेक्षा शुद्ध संग्रह नयसे