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द्वितीय खंड । सुवर्णकी सत्ता ध्रुव होनेसे ही उसमेंसे अनेक आभूषण बननेका काम होसक्ता है और तब वह असत् द्रव्य आकाशके पुष्प,समान हो जावेगा। तथा उपादानकारणका नियम न रहेगा अर्थात् घड़ा मिट्टीसे बनता है यह नियम न रहेगा । जब मिट्टी अपनी सत्ता न रक्खेगी तब उससे धड़ा बनेगा ऐसा नियम नहीं ठहर सक्ता है । और न मनमें यह विश्वास होसक्ता है कि अमुक कार्य अमुक कारणसे होगा। रोटी गेहूंसे बनती है ऐसा विश्वास होनेपर ही लोग गेहूंको खरीदकर लाते हैं । इस विश्वासका कारण गेहूंकी सत्ता है । इसलिये बौद्धमतके अनुसार माननेसे द्रव्यकी सत्ता नहीं ठहर सकी। यदि नैयायिकके अनुसार पहले सत्ता और द्रव्यको जुदा जुदा माना जावे फिर समवाय द्वारा उनका मेल माना जावे तब भी द्रव्यकी सिद्धि नहीं होसकी। द्रव्यमें सत्ता नहीं हो तो वह कैसे ठहर सक्ता है । सत्ता विना द्रव्यका अस्तित्व ही नहीं होसक्ता !
और न सत्ता द्रव्यके विना पाई नासती है । इसलिये यही बात निश्रित है सत्ता गुण है। द्रव्य गुणी है । दोनोंका अभेद है।, - उत्थानिका-आगे आचार्य पृथक्त्व और अन्यत्वका लक्षण कहते हैं
पविभत्तपदेसत्तं पुत्तमिदि सासणं हि वीरस्स । अण्णत्तमतभावो ण तब्भवं भवदि कधमेगं ॥ १५ ॥ प्रविभक्तप्रदेशत्व पृथक्त्वमिति शासन हि वीरस्य । अन्यत्त्वमतद् भावो न तद् भवत् भवति कथमेकम् ॥१५॥
अन्वय सहित सामान्यार्थ-(पविमत्तपदेसत्तं) जिसमें प्रदेशोंकी अपेक्षा अत्यन्त भिन्नता हो (पुचतमिदि) वह पृथक्व