Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 388
________________ द्वितीय खंड। [३६७ . अन्वय सहित सामान्यार्थ-(णिहदधणघादिकम्मो) सर्व घातिया कर्मोको नाश करनेवाले (पञ्चक्ख) प्रत्यक्षरूपसे (सव्वभावतच्चण्हू) सर्व पदार्थोके जाननेवाले (णेयंतगदो ) सर्व ज्ञेय पदार्थोके पार पहुचनेवाले ( असंदेहो ) तथा सशयसहित (समणो) केवलज्ञानी महामुनि (फम्म8) किस पदार्थको (झादि) ध्याते हैं। विशेषार्थ-पूर्वसूत्रमें कहे प्रमाण निश्चल अपने परमात्मा तत्त्वमें परिणमन रूप शुद्ध ध्यानके बलसे घातिया कोके क्षयकर्ता, प्रत्यक्षज्ञानी, सर्व ज्ञेयोंको जाननेकी अपेक्षा उनके पार होनेवाले ऐसे तीन विशेषण सहित जीवन मरण आदिमें समताभाव रखनेवाले महा श्रमण श्री सर्वज्ञ भगवान जो संशयादिसे रहित हैं वह किस पदार्थको ध्याते हैं यह प्रश्न है अथवा किसी पदार्थको भी नहीं ध्याते हैं यह आक्षेप है ? यहां यह अर्थ है कि जैसे कोई भी देवदत्त विषयोके सुखके निमित्त किसी विद्याकी आराधनारूप ध्यानको करता। है जब वह सिद्ध होजाती है तब उस विद्याके फलरूप विषयसुखको सिद्ध करलेता है फिर उस विद्याकी आराधनारूप ध्यानको नहीं करता है । तैसे ही भगवान भी केवलज्ञान रूपी विद्याके निमित्त तथा उसके फलरूप अनन्त सुखके निमित्त पहले छमस्थ अर्थात् अल्पज्ञकी अवस्थामें शुद्ध आत्माकी भावना रूप ध्यानको करते थे अब उस ध्यानसे केवलज्ञानरूपी विद्या सिद्ध होगई तथा उसका फलरूर अनन्त सुख भी सिद्ध होगया तब किस लिये ध्यान करते है ऐसा प्रश्न है या आक्षेप है ? दूसरा कारण यह है कि पदार्थ परोक्ष होनेपर उसका ध्यान किया जाता । है भगवानके सर्व प्रत्यक्ष है तब उनके ध्यान किस तरह होसका

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