Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 403
________________ ३८२] श्रीप्रवचनसारटोका। है कि एक जीव मनुष्य पर्यायसे देव पर्यायमें गया वहां यद्यपि पर्याय बदली है परंतु जीव द्रव्यने अपना जीवत्व नहीं छोडा इस तरह द्रव्यकी अपेक्षा जीवका देव होना सत् उत्पाद है। तथा यदि पर्यायकी अपेक्षा देखें तो जो मनुष्य था वह दूसरे ही स्वभावको लिये हुए था अब जो देव हुआ हुआ वह दूसरे ही खभावको लिये हुए है इस तरह भिन्नताकी अपेक्षा मनुष्यसे देव होना असत् उत्पाद है । इस तरह बताया है कि द्रव्य किसी अपेक्षा एकरूप व किसी अपेक्षा अन्यरूप है-एक ही समयमें दो स्वभाव द्रव्यमें पाए जाते हैं जैसे अस्तिनास्तिस्वभाव । द्रव्य अपने द्रव्यादि चतुष्टयसे अस्ति खरूप है परंतु उसकी सत्ता में परद्रव्यादि चतुष्टय नहीं है इस लिये परकी अपेक्षा नास्ति स्वरूप है। इस अस्ति नास्तिको समझानेके लिये सप्तभंग वाणीका स्वरूप बताया है कि द्रव्य किसी अपेक्षा अर्थात् खव्यादिकी अपेक्षा अस्ति रूप है, परद्रव्यादिकी अपेक्षा नास्तिरूप है, एक समयमें वचनसे न कहे जानेकी अपेक्षा अवक्तव्य स्वरूप है। दोनों स्वभावोंको क्रमसे कहें तो अस्तिनास्ति खरूप है । कथंचित् अवक्तव्य और वक्तव्यकी अपेक्षा कहें तो द्रव्य अस्ति अवक्तव्य स्वरूप है नास्ति अवक्तव्य खरूप है तथा अस्तिनास्ति अवक्तव्य खरूप है । इस तरह नित्य, अनित्य, तथा भेद अभेद कोई भी दो विरोधी स्वभावोंको एक समयमें समझानेके लिये सात मंगसे समझा या समझाया नासक्ता है। फिर कहा है कि कर्मोके वन्धके कारण यह जीव संसारमें विभावोंसे परिणमन करके नर नारकादि गतियोंमें भ्रमण किया

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