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श्रीप्रवचनसारटीका ।
पर्यायके साथ भेद है । सत्ता नामकी संज्ञासे मात्र सत्पनेका बोध होता है द्रव्यगुण पर्यायका बोध नहीं होता है । इसी तरह द्रव्य गुण पर्यायसे द्रव्यगुण पर्यायका बोध होता है, सत्ताका बोध नहीं होता है। इस तरह संज्ञा लक्षण प्रयोजनादिकी अपेक्षा सत्ताका और द्रव्य आदिका अन्यपना है। इस तरह गुणगुणीका प्रदेशकी अपेक्षा - अभेद है, परन्तु स्वरूपकी अपेक्षा भेद है ।
यहां वृत्तिकारने मोतीकी मालाका दृष्टांत दिया है उसका खुलासा यह है कि मोतीकी माला, सूत, तथा मोती इन तीनोंमें सफेदी गुण व्यापक है । प्रदेशो की अपेक्षा सफेदी और मोतीके हारकी एकता है किन्तु संज्ञा प्रयोजनादिकी अपेक्षा भेद है । अर्थात् - सफेदी सिर्फ सफेदपनेको ही कहती है, यह नहीं बताती है कि हार सूत या मोती है - इसी तरह हार सृत या मोती अपने २ स्वरूपको बताते हैं, सफेदीको नहीं बताते है। इस तरह सफेदीका और हार, सूत, मोतीका अन्यपना है ।
यहां विशेषता यह झलकती है कि यदि सत्ताका विस्तार किया जावे तो द्रव्यकी सत्ता, गुणकी सत्ता और पर्यायकी सत्ता ऐसी तीन सत्ताएं हो जावेगीं । ये तीनों सत्ताएं भी परस्पर अपने स्वरूपसे भिन्न हैं यद्यपि प्रदेशोका भेद नही है। जहां द्रव्यकी सत्ता है वहीं उसके गुणकी सत्ता है, वहीं उसके पर्यायकी सत्ता है तथापि स्वरूपकी अपेक्षा द्रव्यदीमत्ता है सो गुणकी सत्ता नही है न पर्यायकी सत्ता है | गुणकी सत्ता है सो द्रव्यकी सत्ता नही है न पर्यायकी सत्ता है सो द्रव्यकी सत्ता नही है न गुणकी सत्ता है । द्रव्य तो - गुणका समुदाय परिणमनशील अन्वयरूप अर्थात् बराबर अखंड