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द्वितीय खंड |
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नही है जो अस्तित्त्व है वही मुक्तात्मा द्रव्यका अपना अस्तित्त्व या सद्भाव है और जैसे सुवर्णके पीतपना आदि गुण और कुंडल आदि पर्यायोके साथ जो सुवर्ण अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावोकी अपेक्षा अभिन्न है, उस सुवर्णका जो अस्तित्त्व है वही पीतपना आदि गुण तथा कुडल आदि पर्यायोका अस्तित्त्व या निज भाव है तैसे ही मुक्तात्मा केवलज्ञान आदि गुण और अतिम शरीरसे कुछ कम आकार आदि पर्यायोके साथ जो मुक्तात्मा अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावोकी अपेक्षा अभिन्न है उस मुक्तात्माका जो अस्तित्त्व है वही केवलज्ञानादि गुण तथा अतिम शरीरसे कुछ कम आकार आदि पर्यायोका अस्तित्त्व या निजभाव जानना चाहिये । अब उत्पाद व्यय धौव्यका भी द्रव्यके साथ जो अभिन्न अस्तित्त्व है उसको कहते हैं। जैसे सुवर्णके द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा सुवर्णसे अभिन्न कटक पर्यायका उत्पाद और कंकण पर्यायका विनाश तथा सुवर्णपनेका धौव्य इनका जो अस्तित्त्व है वही सुवर्णका अस्तित्त्व व उसका निज भाव या स्वरूप है । तैसे ही परमात्माके द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा परमात्मा से अभिन्न मोक्ष पर्यायका उत्पाद और मोक्षमार्ग पर्यायका व्यय तथा इन दोनों के आधारभूत परमात्म द्रव्यपनेका धौव्य इनका जो अस्तित्त्व है वही मुक्तात्मा द्रव्यका अस्तित्त्व या उसका निजभाव या स्वरूप है। और जैसे अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा कटक पर्यायका उत्पाद और कंकण पर्यायका व्यय तथा इन दोनोके आधारभूत सुवर्णपुनेका धौव्य इनके साथ अभिन्न जो सुवर्ण उसका जो अस्तित्व है वही कटक पर्यायका उत्पाद, कंकण पर्यायका व्यय तथा इन
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