Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Atmaram Jain Model School

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Page 9
________________ इस प्राकृत-व्याकरण के आधार पर प्राकृत भाषा सीखने में विद्यार्थियों को पर्याप्त सुविधा प्राप्त होगी, इसमें सन्देह नहीं । सम्पादक :श्रमण, वाराणसी, अगस्त १९७५ । १०. श्री ज्ञान मुनि जी म० स्थानकवासी संतों में अग्रणी हैं । ज्ञान, तप, चारित्र और त्याग की साक्षात् प्रतिमा हैं । मुनि जीने लगभग २५ ग्रन्थों की रचना की है। इनकी सभी र बनायें इनके ज्ञान तथा पाण्डिल्य और सामग्री मनोभावनामों की प्रतीक हैं। हाल ही में आचार्य हेम चन्द्र की रचना "सिध हैमशब्दानुशासन के प्राठवें अध्याय के तीन पादों की संस्कल हिन्दी व्याख्या---'प्राकृत व्याकरणम्' भाग पहला प्रकाशित कर महाराज श्री ने हिन्दी जगत तथा प्राकृत भाषा-प्रेमियों पर महान् उपकार किया है। सरल, सुबोध तथा पठनीय यह टीका हिन्दी साहित्य को प्रमूल्य निधि है। प्राचार्य हेमचन्द्र जी की मूल रचना-हैमब्दानुशासन (जिसे मिद्ध-हैमशब्दानुशासन भी कहते हैं) माठ अध्यायों में विभक्त है । प्रारम्भ के सात अध्यायों में संस्कृत भाषा के व्याकरपा की विवेचना है और पाठवें में प्राक त व्याकरण की 'तद्भव शब्दों का अनुशासन तथा प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के विशेषतः अभिग्रामों सम्बन्धी परिवर्तनों का मुव्यवस्थित नियमांकम ही इस अध्याय का लक्ष्य जान पड़ता है। प्राचार्य हेमादा के पूर्व तथा पश्चात प्राकत भाषा के व्याकरणचार्यों की लम्बी परम्परा मिलती है। वैसे तो प्रथम ज्याकरणों में चण्ण का नाम सबसे पहले लिया जाता है, फिर भी इनसे पहले भी प्राकल व्याकरण का उल्लेख मिलता है। अपने काटयशास्त्र में भरतमुनि ने- प्राकृत शब्द रचना के कुछ नियमों की चर्चा की है। चण्डकत पाकृत लक्षण' में करीब सौ सूत्र हैं, जिन्हें चार पादों में विभक्त किया गया है। पत्रात वररूचि ने 'प्राप्त प्रकाश' व्याकरण की रचना की है। बारह परिच्छेदों के इस ग्रन्थ में नौ अध्याय महाराष्ट, प्राकृत के शब्दों के रूप-विधानों में व्याख्या के लिए दिए गए हैं। शेष लीन में क्रमश: पैशाची (दसवें), मागधी ग्यारहवें) और शौरसेनी (बारहवें) प्राकृतों के शब्दों के लक्षणों को निरूपित किया गया है। 'प्राकत प्रकाश' पर भामह, कासायन,बसन्तराज तथा सदानन्द की उपलब्धटीक ग्रन्थ की लोकप्रियता प्रकट करती है। वररूमि के बाद प्राचार्य ममन्द्र ने 'सिध-हैमानशासन' व्याकरण की रचना की। रचना के समकक्ष की कोई व्याकरण पुस्तक प्राकृत व्याकरण पर अब तक नहीं लिखी गई। इस से ही इस ग्रन्थ की उपयोगिता तथा महत्ता का प्रभाव मिलता है। जैसा कि ऊपर संकेत किया गया है। मूल ग्रन्थ के पाठवें अध्याय में ही प्राकृमच्याकरण की विवेचना है। इस अध्याय के चार पाद हैं। प्राकृत व्याकरणम् (भाग पहला) में इस अध्याय के प्रथम तीन पादों की अविकल संस्कृत तथा । हिन्दी में टीका है, दूसरे भाग में चौथे पाद की टीका मुनि जी ने प्रस्तुत की है, जो मुद्रणाधीन है। प्रथम भाग के प्रथम पाद में...-टीकाकार ने क्रमशः संधि, व्यजनान्त शमद, लिङ्ग, विसर्ग, अनुस्वार तथा स्वर श्रीन व्यंजन-व्यत्यय प्रादि की टीका संस्कृत--पश्चात हिन्दी में प्रस्तुत की है । दुसरे पाद में-वनि प्राम-सम्बन्धी परिवर्तनों की विवेचना-सहित, निपात तथा अव्ययों की विवेचनास्वरूप टीकायें प्रस्तुत हैं। यह पाद भाषा-विज्ञान के छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। तीसरे पाद में कारक, विभक्ति, किया प्रादि के नियमों-उपनियमों के निर्देशों को टीकाएं हैं। प्रतीत होता है

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