Book Title: Prakrit Vidya 02
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ सरस्वती मया दृष्टा दिव्या कमललोचना। हंसस्कन्धसमारूढा वीणापुस्तकधारिणी।। 10 ।। प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती। ततीयं शारदादेवी चतुर्थं हंस-गामिनी।। 11 ।। पंचमं विदुषां माता षष्ठं वागीश्वरी तथा । कुमारी सप्तमं प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी।। 12 ।। अर्थ :- मनुष्य सरस्वती भगवती के कृपा-प्रसाद से काव्य रचना करने में समर्थ होते हैं, अत: अविचलभाव से सरस्वती देवी की आराधना करनी चाहिये।। 9।। मैंने माता सरस्वती के पुण्यदर्शन किये हैं, वह दिव्यस्वरूपा, कमललोचना, हंसारूढा और वीणा तथा पुस्तक धारण करनेवाली हैं।। 10 ।। प्रथम वह भारती हैं, द्वितीय सरस्वती। शारदा देवी उनका तृतीय नाम है और चतुर्थ हंसगामिनी।। 11 ।। विद्वत्कुल की माता, वागीश्वरी, कुमारी ब्रह्मचारिणी, ये उनके पंचम-षष्ठ सप्तम और अष्टम नाम हैं।। 12 ।। नवमं च जगन्माता दशमं ब्राह्मणी तथा। एकादशं तु ब्रह्माणी द्वादशं वरदा भवेत् ।। 13 ।। वाणी त्रयोदशं नाम भाषा चैव चतुर्दशम् । पंचदशं श्रुतदेवी षोडशं गौ निगद्यते।। 14।। एतानि श्रुतनामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत् । तस्य सन्तुष्यति माता शारदा वरदा भवेत् ।। 15।। सरस्वती ! नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी।। विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ।। 16।। अर्थ :- नवम से षोडश-पर्यन्त माता सरस्वती के जगन्माता, ब्राह्मी-ब्रह्माणी, वरदा, वाणी, भाषा, श्रुतदेवी और षोडगौ ... नाम हैं।। 13-14 ।। इन श्रुतदेवी के नामों को प्रात:काल उठकर जो पढ़ता है, उस पर माता शारदा प्रसन्न होती हैं एवं वर-प्रदान करती है। हे मात ! सरस्वती ! हे वरदायिनि ! हे सम्पूर्ण कामनाओं की उपलब्धि में नित्यसमर्थे ! आपको नमस्कार है। मैं विद्यारम्भ करता हूँ, मुझे आपकी कृपा से सदैव सिद्धि प्राप्त हो।। 15-16।। सम्यग्दर्शन बिन दुःख पाय 'समत्त-रहिद-चित्तो, जोइस-मंतादिएहि वर्सेतो। णिरयादिसु बहुदुक्खं, पाविय पविसदि णिगोदम्मि।।' —(आचार्य यतिवृषभ, तिलोयपण्णत्ति, भाग 1. 361, 262) अर्थ :- सम्यग्दर्शन से विमुख चित्तवाला ज्योतिष और मन्त्र-तन्त्रादिकों से आजीविका करता हुआ पुरुष नरकादि में बहुत दु:ख पाकर परम्परा से निगोद में प्रवेश करता है। 106 प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 220