Book Title: Prakrit Vidya 02 Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain Publisher: Kundkund Bharti Trust View full book textPage 6
________________ (मंगलाचरण श्री वाग्देवी स्तोत्रम् -आचार्य मल्लिषेण चन्द्रार्क-कोटिघटितोज्ज्वलदिव्यमर्ते ! श्रीचन्द्रिकाकलितनिर्मलसप्रभासे ! कामार्थदे ! च कलहंस-समाधिरूढे ! वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि!।।1।। अर्थ :-- हे कोटि-कोटि चन्द्रसूर्यों से निर्मित उज्ज्वल एवं दिव्यस्वरूपे ! हे लक्ष्मी और चन्द्रातप (कौमुदी) कलित स्वच्छप्रभाधारिणि ! हे कामनाओं और अर्थ-सम्पत्ति को प्रदान करनेवाली ! हे राजहंस-पृष्ठ-आरोहणशीले ! हे अम्ब ! वागेश्वरि ! देवि ! आप प्रतिदिन मेरी रक्षा करें।। 1।। देवासरेन्द्र-नतमौलिमणि-प्ररोचि: श्री मञ्जरी-निविड-रजित-पादपद्म ! नीलालके ! प्रमदहस्ति-समानयाने ! वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ! ।। 2 ।। अर्थ :- हे नतमस्तक होकर वन्दना करनेवाले देवेन्द्रों एवं असुरेन्द्रों की मुकुटमणिस्फुरित किरणमय श्री मंजरी से अतिशय-रंजित चरणकमल विशोभिते ! हे नील-श्यामकेशिनि ! हे मत्तगजेन्द्र-गामिनि ! हे अम्ब ! देवि ! वागीश्वरि (वाणी की ईश्वरी) ! आप प्रतिदिन मेरी रक्षा करें।। 2।। केयूर-हार-मणि-कुण्डल-मुद्रिकाद्यैः सर्वांगभूषण ! नरेन्द्र-मनीन्द्रवन्ध ! • नाना-सुरत्नवर-निर्मलमौलियुक्ते ! वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि!।। 3 ।। अर्थ :- हे अम्ब ! आप केयूर (अंगद-बाहुधारणीय आभूषण) हार (ग्रीवाभूषण) तथा मणिजटित कुण्डल तथा मुद्रिका (अंगुलि-अलंकार) आदि सर्वांग के आभूषणों से विभूषित हैं, नरपति और मुनीश्वर आपकी वन्दना करते हैं। आपका मौलिमुकुट अनेक श्रेष्ठ-रत्नों की निर्मल गुम्फन-विधि से विरचित है। हे देवि ! वागीश्वरि ! आप प्रतिदिन मेरी रक्षा करें।। 3 ।। पूज्ये ! पवित्रकरणोन्नकामरूपे ! नित्यं फणीन्द्र-गरुडाधिप-किन्नरेन्द्रैः ! विद्याधरेन्द्र सर यक्ष समस्तवृन्दैर्वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ! ।। 4।। अर्थ :-- हे पूजनीये ! देवि ! (दिव्यरूपिणी) हे पवित्र इन्द्रियवती एवं कामनाओं के 004 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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