Book Title: Prakrit Vidya 02
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 4
________________ सम्पादक-मण्डल डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री प्रो. (डॉ.) प्रेमसुमन जैन डॉ. उदयचन्द्र जैन . प्रो. (डॉ.) शशिप्रभा जैन प्रबन्ध सम्पादक डॉ. वीरसागर जैन श्री कुन्दकुन्द भारती (प्राकृत भवन) 18-बी, स्पेशल इन्स्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली-110067 फोन (011)6564510,6513138 फैक्स (011)6856286 Kundkund Bharti (Prakrit Bhawan) 18-B, Spl. Institutional Area New Delhi-110067 Phone (91-11)6564510, 6513138 Fax (91-11)6856286. वज्जि -रख इस देश के प्राचीनतम गणतन्त्रों में से एक सर्वाधिक प्रभावशाली गणतन्त्र का नाम 'वज्जि-गणतन्त्र' था, इसे वज्जिसंघ' या वज्जि-रटु' (वज्जिराष्ट्र) या वैशाली गणतन्त्र' भी कहा जाता था। यह वज्जि' शब्द 'वृजिन' शब्द से निर्मित है, जिसका अर्थ जिनेन्द्र भगवान् है। चूंकि वज्जि लोग जिनेन्द्र भगवान् के मतानुयायी थे, अत: उन्हें 'वज्जि' या 'वृजिन' संज्ञा प्राप्त हुई। - 'धनञ्जय नाममाला' (131) में पाप को जीतनेवाले को वृजिन' कहा गया है। चूंकि जिनेन्द्र मतानुयायी अन्तिम समय में शरीर मात्र को परिग्रह समझकर उसका मोह भी त्याग देते थे, और सल्लेखना-विधि से स्वेच्छापूर्वक देहत्याग कर देते थे; अत: उन्हें. 'वृजिन' कहा गया। काव्यशिक्षा' में तीर्थंकर ऋषभदेव को वृजिनं जिन:' की संज्ञा दी गयी है— श्रीमन्नाभि-नरेन्द्रस्य, नन्दनो वृजिनं जिन:। नीतित्रयी-लताकन्दो, हरतादघघस्मरः ।। -(काव्यशिक्षा, 29) .. श्रीमान् नाभिराजा के नंदन, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप नीतित्रयी-वल्लरीके कन्द (सत्प्रसव), पापों का विनाश करनेवाले भगवान् ऋषभदेव वृजिनेश्वर हमारे कलुषों का क्षय करें। ___ महाकवि 'कल्हण' ने काश्मीर नरेश को 'वृजिन' कहकर जैनमतानुयायी और जिनधर्म-प्रभावक घोषित किया है. 'य: शांतवृजिनो राजा, प्रपन्नो जिनशासनम् ।' ---(राजतरंगिणी, 1/102) ऋग्वेद में बाईसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) को भी वृजिन' कहा गया है- 'अरिष्टनेमि परिद्यामियानं, विद्याभेषं वृजिनं चीरदानम्।' (ऋग्वेद, 2/4/24) ** Jain Sallation International प्राकतविद्या-जनवरी-जन '2002 वैशालिक-महातीर-विपोषांक y.org

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