Book Title: Prakrit Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 176
________________ यह किसकी पत्नि (है) ___हस्तिनापुर नगर में शूर नामक राजकुमार रहता था (जो) नाना गुणरूपी रत्नों से युक्त (था)। उसकी पत्नी गंगा नामवाली. शीलादि गुणों से अलंकृत और परम सौभाग्यशाली (और पराक्रमवाली) (थी)। सुमति नामक उनकी पुत्री थी । वह कर्मफल के वश से पिता, माता, भाई और मामा के द्वारा अलग अलग वरों के लिए दे दी गई । चारों ही वे वर एक ही दिन विवाह करने के लिए आ गये । और आपस में कलह करने लगे। तब उनके मध्य में उत्पन्न होते हुए विषम संग्राम व बहुत मनुष्यों के क्षय को देखकर सुमति कन्या आग में प्रविष्ट हुई, उसके साथ घनिष्ठ स्नेह के कारण एक वर भी प्रविष्ट हा । एक हड्डियों को गंगा के प्रवाह में डालने के लिए गया। एक चिता की राख को वहाँ ही जलधारा में डालकर उस दुःख के कारण मोहरूपी महाग्रहों से पकड़ा हुआ पृथ्वी पर भ्रमण करने लगा। चौथा वहीं ठहरा । उस स्थान की रक्षा करते हुए प्रतिदिन एक अन्य पिण्ड को छोड़ता हुआ काल बिताने लगा। अब तीसरा मनुष्य पृथ्वी पर घूमता हुआ किसी ग्राम में पाकगृह में भोजन बनवाकर जीमने के लिए बैठा। उसके लिए घर स्वामिनी ने (भोजन) परोसा । तब उसका छोटा पुत्र अत्यन्त रोया । तब उसके द्वारा क्रोध के वशीभूत हुअा गया । वह बालक अग्नि में फेंक दिया गया। वह वर भोजन करता हुए उठने लगा। उसने कहा"सन्तानरूप किसी के लिए भी अप्रिय नहीं होते हैं जिनके लिए माता-पिता अनेक देवताओं की पूजा, दान, मन्त्र, जाप आदि क्या-क्या नहीं करते हैं । तुम सुखपूर्वक भोजन करो। पीछे ही (मैं) इस पुत्र को जीवित कर दूंगी।" तब वह भी भोजन करके शीघ्र उठा, उसी समय उसके द्वारा (स्त्री के द्वारा) निज घर के भीतर से अमृत रस के घड़े को लाकर अग्नि में छिड़काव किया गया। बालक हँसता हुआ निकला । माता की गोद में लिया गया। तब उस वर ने सोचा "अहो आश्चर्य ! अहो आश्चर्य ! इस प्रकार अग्नि से जला हुमा भी जिया। यदि यह अमृत रस मेरे लिए होता है तो मैं भी उस कन्या को जिला दूंगा। इस प्रकार सोचकर धूर्तता से कपट वेश धारण करके रात्रि में वहां ठहरा । अवसर पाकर उस अमृत रस के घड़े को लेकर, ग्रहण करके हस्तिनापुर आ गया। प्राकृत अभ्यास सौरम ] [ 165 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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