Book Title: Prakrit Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 223
________________ तस्स देहपक्खालणाय सा जलं गहिऊण आगया, नियपइस्स देहसुद्धि करेऊण परिहाणवत्थप्पणे ताई चेव वत्थाई अप्पेइ । सो ताई वत्थाई पासिऊणं धिट्टत्तणेण कहे इ– “हुँ, हुं, मए तयच्चिय तुमं नाया, मए चितिअं-मम भज्जा किं करेइ ? तेणाहं भय भंतो इव तत्थ थियो, सव्वावहरणमुवेक्खिग्रं, अन्नहा मए पुरो इत्थीए का सत्ती ?" सा कहेइ"हे भत्तार ! तव बलं मए तया चेव नायं, गेहेसूरो तुमं असि, असो अज्जयणानो तुमए मज्झरत्तीए मंजूसं गहिऊण कयावि न, प्रागंतव्वं" ति भज्जाए वयणं सो अंगीकरेइ । 212 1 [ प्राकृत अभ्यास सौरभ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238