Book Title: Prakrit Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 224
________________ देह-प्रक्षालन के लिए वह जल लेकर आई। अपने पति की देह की सफाई करके, पहनने के लिए अर्पण में (उसने) वे ही वस्त्र दिए । वह उन वस्त्रों को देखकर ढीठता से कहता है -हुं-हुँ मेरे द्वारा उस समय ही तुम जान ली गई थीं। मेरे द्वारा विचार किया गया-मेरी पत्नी क्या करती है ? इसलिए भय से ग्रस्त की तरह वहां रहा और सब अपहरण की उपेक्षा की गई। अन्यथा मेरे सामने स्त्री की क्या शक्ति है ? उसने कहा- "हे स्वामी ! तुम्हारा बल मेरे द्वारा उसी समय ही जान लिया गया (था), तुम गृह- शूर हो । अतः माज से तुम्हारे द्वारा मध्यरात्रि में पेटी को लेकर कभी भी न पाया जाना चाहिए।" इस प्रकार पत्नी के वचन को उसने अंगीकार किया। प्राकृत अभ्यास सौरम । [ 213 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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