Book Title: Prakrit Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 226
________________ सो सुवण्णारु भएण कंपमाणु एत्त हे - तेत्त हे अवलोएंतु मग्गि श्रावणवीहीहि गच्छंतु जइहुं सागवावारी हट्टसमीव श्रागउ तइयहुं केण जणेण पक्कचिन्भडु बाहिर पक्खित्तु तं तु तासु सुवण्णयारस्सु पिट्ठभागे लग्गिउ । तेण णाउ केणावि हउं पहरिउ । पिट्ठदेसि हत्थे फासेइ, तेत्थु चिन्भस्सु रसु बीश्राइं च फासेवि विद्यारिउ - अहो ! हउं गाढयरुपहरिउ म्हि । तेण घाएण समउ सोणिउ पि निग्गउ, तासु मज्भे कीडगा वि समुपपन्ना | एम अच्चंत भयाउलो तुरन्ते गच्छंतु घरदारे समागउ | -- पिहिउ घरदारु पासिवि नियमज्जा ग्राहवणहो उच्चसरे कहेइ - "हे मयणस्सु माया ! दारु उग्धाडे, दारु उग्धाडे ।" सा प्रभंतरि थिया सुगंति विप्रसुति व किचि कालु थिया । अइ अक्कोसणे सा आगच्छिवि दारु उग्घाडिउ एम पुच्छइ — "कि - इक्कोससि ? " सो भयभंतु गिहि पविसिउ भज्जा कहेइ – "दारु तुरन्ते पिहाहि तालगुपि देसु ।" ताए सब्बु करिवि पुट्ठ - " कि एव नग्गु जाउ ?" तेण वुस्तु-अभंतरि ववरइ चलि, पच्छा मई पुच्छ ।” गिहसु अंते अववरइ गमेवि निच्चितु जाउ । ताए पुणु विपुट्टू — "कि एम नग्गु ग्रागउ ?" तेण कहिउ - "चोरहिं लुंठिउ, सहवि नग्गु कउ ।" सा कहेइ - "पुव्वि मई कहिउ - हे सामि ! पई एव मज्झ रतिहिं मंजूसा गहेविण श्रागच्छेव्वउं, तई ण मण्णिउ तेण एम जाउ” । सो कहेइ"हउं महाबलिट्ठ वि कि करउं ? जइ पंच-छ वा चोरा श्रागया होज्जा तावेहिता सव्वा हउं जाएवं समत्थु, एइ उ सउ थेणा प्रागया, तेण हउं तहि सहुं जुज्झमाणु पराजिउ, सब्बु लुंठेवि नग्गु किउ, पिट्ठदेसु य असिएं हउं पहरिउ । पासे पिट्ठदेसु, घाण समर कीडगावि उत्पन्ना । ताए तासु पिट्ठदेसु पासि गाउ - चिन्भस्सु रसु बियाई च इमाई संति । भत्ता रहो विकहिउ -- "सामि ! भयभंतेण पई एम जाणिउ - 'केण वि हउं पहरिउ एम तावेहि सोणि निग्गउ, तेत्थु य कीडगा वि समुप्पन्ना' तं गउ सच्च । तुहुं चिब्भडे पहरिउ सि, तासु रसु बीयाई च पिट्ठदेसि लग्गाइ ति ।" तम्रो (तो) तहो देह · प्राकृत अभ्यास सौरभ ] Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only [ 215 www.jainelibrary.org

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