Book Title: Prakrit Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 196
________________ लो। और मेरे लिए (तुम) दो पालि (कटोरी) सत्तु दे दो । जिसको लेकर मैं जाऊँगा। और(वह) मैं जिस किसके हाथ से ग्रहण नहीं करूँगा । सब अलंकारों से भूषित प्राणों से भी अधिक प्यारी जो तुम्हारी पत्नी है, उसके द्वारा दिया जाना चाहिए। तब मेरी उत्तम सन्तुष्टि होगी। (मैं) अपने को जीवलोक के अन्दर (भाग्यशाली) मानूंगा। __ तब उनके द्वारा गवाही ((सक्खि) वि) बुलाई गई और वह कही गई-इसी प्रकार होवे । तब उन पुत्रों की माता दो पालि सत्तु लेकर निकली- उसके द्वारा वह हाथ पर पकड़ ली गई. उसको लेकर (उसने) प्रस्थान किया। उनके द्वारा ही कहा गया – 'यह क्या करते हो ?' उसके द्वारा कहा गया- दो पालि सत्तु को ले जाता हूं।' तब उनके शब्द से महाजन एकत्र हुए, (पूछा) (गया)- यह क्या है ? तब उनके द्वारा जैसा हुअा वैसा सब कह दिया गया। आये हुए मनुष्यों द्वारा मध्यस्थता से बनकर न्याय का निश्चय सुना गया। वे गंधी पराजित हुए। कठिनाईपर्वक उस महिला को उसने छुड़वाया । गाड़ी अच्छी तरह प्रचुर अर्थ के साथ दे दी गई। प्राकृत अभ्यास सौरभ 1 I 185 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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