Book Title: Prakrit Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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ताए वि कहिलं- "पुत्तवहूणं वयणं सच्चं, जो मम सव्वण्णुधम्मपत्तीए छम्मासा एव जाया, जो इनो छम्मासानो पुव्वं कत्थ वि मरणपसंगे अह गया । तत्थ थीणं विविहगुणदोसवट्टा जाया।"
एगाए वुड्ढाए उत्तं - "नारीण मज्झे इमीए पुत्तवहू सेट्ठा । जोव्वणवए वि सासूभत्तिपरा धम्म कज्जम्मि स एव अपमत्ता, गिहकज्जेसु वि कुसला नन्ना एरिसा । इमीए सासू निब्भगा, एरिसीए भत्तिवच्छलाए पुत्तवहूए वि धम्म कज्जे पेरिज्जमाणावि धम्म न कुणेइ इमं सोऊरण बहुगुणरंजिया तीए मुहायो धम्मो पत्तो। धम्मपत्तीए छम्मासा जाया, तो पुत्तवहूए छम्मासा कहिा , तं जुत्तं ।”
पुत्तो वि पुट्ठो, तेण वि उत्तं - "रत्तीए समयधम्मोवएसपराए भज्जाए संसारासारदसणेण भोगविलासाणं च परिणामदुहदाइत्तणेण वासाणईपूरतुल्ल जुव्वणत्तण य देहस्स खणभंगुरत्तणेण जयम्मि धम्मो एव सारु त्ति उदिट्ठो हं सव्वण्णुधम्माराहगो जाओ, अज्ज पंचवासा जाया । तो वहूए मं उद्दिस्स पंचवासा कहिया, तं सच्चं ।" एवं कुडुंबस्स धम्मपत्तीए वट्टाए विउसीए य पुत्तवहूए जहत्थवयणं सोऊण लच्छीदासो वि पडिबुद्धो वुड्ढत्तणे वि धम्म पाराहि सग्गई पत्तो सपरिवारो।
2001
[ प्राकृत अभ्यास सौरभ
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