Book Title: Prakrit Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 215
________________ धम्मन कुरणे, इमु सुणेवि बहुगुणरंजिया ताहे मुहे धम्मो पत्तो । धम्मपत्तीह छमासा जाया, तम्रो पुत्तवहूए छम्मासा कहिश्रा, तं जुत्तु । पुत्तु विपुट्टू, तेण वि उत्तु - रत्तिर्हि समय धम्मोवएसपराए भज्जाए संसारासारदंसणें भोगविलासहं च परिणामदुहदाइत्तणे, वासाणईपूरतुल जुव्वणतणे य देहसु खणभंगुरतणे जयि धम्म एव सारु ति उवदिट्टु । हरं सव्वष्णु-धम्मारागहो जाउ, अज्जु पंचवासा जाया । तो बहुए मई उद्दिस्सेवि पंचवासा कहिया त सच्चु । एव कुटुंबसु धम्मपत्ति वट्टाए विउसी य पुत्तबहूहे जहत्थवयणु सुणेप्पिणु लच्छोदासु वि पडिबुद्ध वुड्ढत्तणि विधम्मु राहिउ सग्गइ पत्तु सपरिवारु । 204 ] Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only प्राकृत अभ्यास सौरभ www.jainelibrary.org

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