Book Title: Prakrit Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अभ्यास-41
कस्सेसा भज्जा
हत्थिणाउरे नयरे सूरनामा रायपुत्तो नाणागुगर यण संजुत्तो बस इ । तस्स भाकिया गगाभिहारणा सीलाइगुणाल किया परमसोहग्गसारा। सुम इनामा तेसिं धूया । सा कम्मपरिणामवसनो जणय-जणणी माया-माउले हिं पुढो-पुढो वराण दिन्ना।
चउरो वि ते वरा एगम्मि चेव दिणे परिणेउं आगया परोप्परं कलहं कुणन्ति । तो तेसि विसमे संगामे जायमाणे बहुजणक्खयं ठूण अग्गिमि पविट्ठा सुमईकन्ना । तीए समं णिविडणे हेण एगो वरो वि पविट्ठो । एगो अट्ठीणि गंगप्पवाहे खिविउं गयो । एगो चिप्रारक्खं तत्थेव जलपूरे खिविऊण तदुक्खेणं मोहमहागह-गहिरो महीयले हिण्डइ । चउत्थो तत्थेव ठिो तं ठाणं रक्खंतो पइदिणं एगमन्नपिंडं मुअंतो कालं गमेइ।
___ अह तइयो नरो महीयलं ममन्तो कत्थवि गामे रंधणघरम्मि मोअणं करा: विऊण जिमिउं उवविट्टो । तस्स घरसामिणी परिवेसइ । तया तीए लहपुत्तो अईव रोइइ । तो तीए रोसपरव्वसं गयाए सो बालो जलणम्मि खिविप्रो । सो वरो भोयणं कुणतो उदिउ लग्गो। सा भणइ - "अवच्चरूवाणि कस्स वि न अप्पियाणि होति, जेसि कए पिउणो अणेगदेवयापूयादाणमंतजवाइं कि कि न कुणन्ति । तुमं सुहेण भोयण करेहि । पच्छा वि एयं पुत्तं जीवइस्सामि ।" तो सो वि भोयणं विहिऊण सिग्धं उद्विग्रो जाव ताव तीए नियघरमझायो अमयरस-कुरपयं आणिऊरण जलणम्मि छडुक्खेवो को। वालो हसंतो निग्गयो । जणणीए उच्छंगे नीग्रो ।
तो सो वरो झायइ - "अहो अच्छरिनं ! अहो अच्छ- अं! जं एवंविहजलणजलिमो वि जीवियो । जइ एसो अमयरसो मह हवइ ता अहम वि तं कन्नं जीवावेमि" त्ति चितिऊण धुत्तत्तेण फूडवेसं काऊण रयणीए तत्थेव ठिग्रो। अवसरं लहिऊण सं अमयरसकूवयं गिहिऊण हस्थिणाउरे आगयो ।
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प्राकृत अभ्यास सौरभ
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