Book Title: Prakashit Jain Sahitya
Author(s): Pannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ प्रकाशकीय वक्तव्य माज से ४३ वर्ष पूर्व समाज के कुछ नवयुवको के हृदय मे जैन धर्म के सिद्धान्तो के प्रचार की भावना जागृत हुई । उन्होने ३० मार्च १९१५ को इस संस्था की नीव 'जैन मित्र मण्डल' के नाम से देहली मे डाली । जैन मित्र मण्डल ने अब तक केवल एक ही उद्देश्य रखा है और वह है 'जैन धर्म का साहित्य द्वारा प्रचार' । मण्डल का सारा कार्य, मण्डल की सारी लगन और उसकी सारी चिन्ताए इसी दिशा में लगी रही हैं। २ मण्डल ने अपने शैव काल के ६ वर्षों मे ही जैन धर्म तथा साहित्यप्रचार मे इतना अधिक कार्य किया कि सन १९२१ की सरकारी जनगणना census मे इसको भारत को 'Chief jain literary Society 'प्रमुख साहित्यिक संस्था' घोषित किया गया। ३. जैन मित्र मण्डल जिस समय दो वर्षों का ही था इसने भारतप्रसिद्ध देहली शास्त्रार्थ “ईश्वर-कर्तृत्व और तीर्थ कर सर्वज्ञ हो सकते है या नही" इस विषय पर 'प्रार्यकुमारसभा' से देहली मे किया। ४. अभी मण्डल इस कार्य से निबटा ही था कि डाक्टर गौडने 'हिन्दू कोड" 'Hindu Code' नाम की एक पुस्तक लिखी जिसमे जैन धर्म तथा जैनो के विषय में बहुत सी गलत बातें लिख डाली । यह पुस्तक भारत सरकार द्वारा मान्यता दी जाने को ही थी कि मण्डल ने इस विषय मे आन्दोलन चलाया और एक पृथक 'जन कोड' बनाने का विचार किया। डाक्टर गौड के प्राकोपो का करारा उत्तर दिया। दो पुस्तकें 'Jainism and Hindu Code' और 'Jains of India and Dr. H.S Gour' प्रकाशित की । इस मबके फलस्वरूप डा० गौड ने अपनी पुस्तक की दूसरी आवृत्ति मे अपनी गलतियो को ठीक किया । ५. मण्डल ने, अपनी स्थापना के १० वर्ष पश्चात् यह कटु अनुभव किया

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 347