________________
संग्रदणीसूत्र. ॥ हवे कटकना देवोना सात प्रकार कहे .॥ गंधव नह दय गय ॥रद जम अणियाणि सव्व इंदाणं ॥ वे
माणियाण वसदा ॥ महिसाय अहोनिवासीणं ॥४५॥ अर्थ- एक गंधव के गांधर्व देवो ते मृदंगाधर जाणवा, बीजं नट्ट ते नाटक करनार, त्रीजुं हय ते घोमानें, चोथं गय ते हाथीन, पांचमुं रह के रथन, बरुं नम के० पालानु कटक. एक प्रकारना थणियाणि के० अनीक एटले कटक, ते सवइंदाणं के सर्व इंस्रोने होय. अने वेमाणियाण के एक वैमानिकने सातमुं वसहा के वृपनवें कटक होय. तथा अहोनिवासीणं के अधोनिवासी जे जुवनपति तथा व्यंतर , तेने सातमुं कटक महिसाय के महिषानुं होय ॥ ४५ ॥
॥ हवे त्रायत्रिंशकादिक देवोनी संख्या प्रत्येक इंधनी कहे .॥ तित्तीस तायतीसा॥परिसति लोगपाल चत्तारि ॥अ
णियाण सत्त सत्तय॥ अणियाहिव सव इंदाणं ॥४६॥ अर्थ- तित्तीसं के तेत्रीश देवो ते तायतीसा के त्रायत्रिंशक एटले गुरुस्थानीया इंसरखा, इंधने सलाह पूबवा योग्य, सर्वने पूजनीक होय. तथा एक बाह्य, बीजी अत्यंतर, त्रीजी मध्यम, ए रीते सर्व मलीने परिस के० पर्खदा ते, तीया के त्रण होय. तथा एक सोम, बीजो यम, त्रीजो वरुण चोथो कुबेर, ए रीते लोगपाल के लोकपाल ते चत्तारि के चार होय, अने अणियाण के अनिक ते पूर्वोक्त गांधर्व प्रमुख सत्तसत्तय के सातसात जात, कटक ते सर्व इंडोने होय. ते अणियाहिव के० ए साते कटकना अधिपति सव्वदाणं के० सर्व इंजो होय ॥ ४६ ।।
नवरं वंतर जोइस ॥ इंदाण न हुँति लोगपाला ॥ तायत्तीस निहाणा ॥ तियसाविय तेसिं नहु हुँति ॥ ४ ॥ अर्थ-पण नवरं के एटवं विशेष जे वंतर के व्यंतरना बत्रीश सोने, तथा जोस के ज्योतिषीना बे इंसोने, लोगपाला के लोकपाल, नटुंति के न होय, तथा तायत्तीस के त्रायत्रिंशक डे अनिधान के नाम जेनुं, एवा तियसावि के जे देवो ते पण तेसिं के० ते व्यंतर तथा ज्योतिषीना इंजोने नहुहुँति के न होय. ॥७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org