Book Title: Prakaran Ratna Sangraha
Author(s): Purvacharya, Kunvarji Anandji
Publisher: Kunvarji Anandji
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श्री क्षमाकुलकम्
नमिऊण पुवपुरिसाण, पसमरससुट्ठियाण पयकमलं । नियजीयस्ससहिं, कसायवसगस्स वुच्छामि ॥ १ ॥
अर्थ:- (पसमरससुट्ठियाण ) प्रशमरसभां सारी रीते रहेला (पुवपुरिस (ण) पूर्व पुरुषोना ( पयकमलं) यरशुम्भाने ( नमिऊण ) नमस्४२ उरीने ( कसायवसगस्स ) उषायना वश थयेला ( नियजीयस्स ) पोताना वने समन्वा योग्य ( अणुसट्ठि) शिक्षाने ( वुच्छामि ) हुं हुं छु. १.
गयमेयज्जमहामुणि-खंदगसीसाण साहुचरियाई । समरंतो कह कुप्पसि, इत्तियमित्ते वि रे जीव ! ॥ २ ॥
अर्थ:- (रे जीव ) डेव ! ( गयमेयजमहामुणि) भड्डामुनि गनसुकुभाव तथा भेतार्य मने ( खंदगसीसाण ) २४४ सूरिना शिष्योना ( साहुचरियाई ) उत्तम यरित्राने ( समरंतो ) संभारत थी- नशुतो सतो ( इत्तियमित्ते वि ) माटसा मात्र सहन निभित्तथा पशु ( कह कुप्पसि ) शा भाटे अप अरे छे ? २.
पिच्छ पाणविणासे वि, नेव कुप्पंति जे महासत्ता । तुज्ज पुण हीणसत्तस्स, वयणमित्ते वि एस खमा ॥ ३ ॥
अर्थ:-( पिच्छसु ) तु ले ! (जे महासत्ता) ने महाधैर्य वाणा पुरुषो होय छेते तो ( पाणविणासे वि ) प्राशुने! नाश थये सते पशु (नेव कुप्पंति ) निश्चे अप उरता नथी ( पुण हीणसत्तस्स ) मने ही सत्त्ववाणा मेवा ( तुज ) तारा नेवा ( वयमित्ते वि ) मे वयनमात्रमा पशु ( एस खमा ) भावी ४ क्षमा છે ને ? અર્થાત કેમ ક્ષમા રાખી શકતા નથી ? ૩.
अक्कोस हणण-मारण धम्म भंसाण बालसुलभाणं । लाभं मन्नइ धीरा, जहुत्तराणं अभावम्मि ॥ ४ ॥

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