Book Title: Prakaran Ratna Sangraha
Author(s): Purvacharya, Kunvarji Anandji
Publisher: Kunvarji Anandji
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श्री लोकनालिद्वात्रिंशिका प्रकरण
પ્રથમ બાલાવબોધકર્તાનું મંગલાચરણ श्रीमदाप्तं प्रणम्यादौ, जगतः स्थितिदर्शकम् ।। वक्ष्ये लोकविचारस्य, वार्तिकं समयानुगम् ॥
मथ:-( जगतः ) सतना (स्थितिदर्शकं) स्वभावने पाउना। (श्रीमदातं ) श्री वीतराग मावानने ( आदौ) प्रथम (प्रणम्य ) नमः४२ ४३रीने ( लोकविचारस्य ) बना वियानु (वार्तिकं ) व्याभ्यान ( समयानुगम् ) समयने अनुसार मेटले आममi sal प्रमाणे ( वक्ष्ये ) ई ४डी. जिणदंसणं विणा जं, लोअं पूरंत जम्ममरणेहिं । भमइ जिओऽणंतभवे, तस्स सरूवं किमवि वुच्छं ॥१॥
मथ:-(जिणदंसणं ) श्री ती ४२ हेक्ना डेटा सभ्यत्व 2424॥ तीथे ४२नुशन ते (विणा जं) विना ( जम्ममरणेहिं ) भ तथा भरणे ४२१, (लो) : मेटले सामान्यपणे यौह ने (पूरंत ) पूरता था ( अणंतभवे ) मनतम प्रत्ये (भमइ जिओ) १ नमे छे. (तस्स सरूवं ) ते सोनु १३५-मा४।२, मा, पडा तथा 15 ( किमवि ) issतिथि-मात्र (वुच्छं) ॐ ॥१॥
અનંતપ્રદેશી અલકાકાશને વિષે રહેલા લેકના આકારને સામાન્યપણે વર્ણવે છે. वइसाहठाणठिअपय-कडित्थकरजुगनरागिई लोगो। उप्पत्तिनासधुवगुण-धम्माइछदवपडिपुण्णो ॥ २॥
मथ-(वइसाह ) विशाम सट पडा ५ ( ठाण ) संस्थानने मेट छ। सवाना समयने विष । डाय तवा मारे (ठिअपय ) स्थाया छ में य२५ नो मने (कडित्थ ) टिने विष समेत छ (करजुग) ७२तयुगल नशे मेवी २ (नरागिई लोगो) मनुष्यनी माति तनी सा छे.
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