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प्रगन्न
MARATHASE
murareATHI
प्राप्त होती है ।४। यह कुमार बाल्यावस्थाको उल्लंघनकर क्रमसे यौवन अवस्थाको प्राप्त हुआ। परन्तु युवावस्थाके साथ २ उसे कामविकार उत्पन्न नहीं हुआ।५। थोड़े कालमें ही प्रद्युम्नकुमार शास्त्रोंमें व चरित्र शस्त्रविद्या में प्रवीण हो गया, अनेक प्रकारकी कलामें कुशल होगया, गुणगणसम्पन्न हो गया और साहस धीरता वीरतामें सब शूरवीरोंमें अग्रसर होगया।६। जो शत्रुगण महा साधनसहित अपने बलके घमण्डमें चकचूर होकर जंगी सेना लेकर राजा कालसंवरपर चढ़ाई करनेको अाते थे, उनसे प्रद्युम्नकुमार सेनासहित स्वयं युद्ध करता था। और उन्हें जीतकर उनकी सेनाको दशोंदिशायोंमें भगा देता था। क्योंकि उसका पुण्य प्रबल था और यह निश्चय है कि, पुण्यके योगसे जीत ही होती है ।७-८। इस प्रकार प्रद्युम्नकुमारने चढ़ाई करके आये हुए अनेक शत्रुओंको परास्त करके उज्ज्वल कीर्ति सम्पादन की, और फिर बड़ी भारी सेना और साधनोंके सहित दिग्विजय करनेके लिये कूच किया।।
और संग्राममें धीरता, वीरताको धारण करनेवाला वा महती सेनाके अधीश्वर जो २ विद्याधर थे, उन सबके देशोंमें सेना सहित गमन किया ।१०। इसप्रकार सम्पूर्ण शत्रुओंको परास्त करके-दिग्विजय करके कुछ दिनोंमें प्रद्युम्नकुमार बड़ी भारी विभूतिके सहित अपने नगरको लौट आये ।११। जब राजा कालसंवरने सुना कि, प्रद्युम्नकुमार दिग्विजय करके प्रागया है, तब उसने अपने मन्त्री श्रादिकों को अाज्ञा देकर नगरीको नानाप्रकारके ध्वजातोरणादिकोंसे शृङ्गारित कराई ।१२। और महोत्सवसहित कुमारका नगरमें प्रवेश कराया। कुमारने पिताको देखकर उन्हें विनय वा भक्तिसहित नमस्कार किया। उस समय राजा कालसंवरने अपने विजयी पुत्रको देखकर अानन्दमें मग्न होकर विचार किया कि, मैंने पहले इसे वनमें यद्यपि युवराजपद दे दिया है परन्तु वह बात सबको प्रगट नहीं है। इसलिये अब में इसे सर्वे मनुष्योंके साम्हने युवराजपद प्रदान कर दूं तो अच्छा हो ।१३-१४। ऐसा विचार कर इस कार्यके लिये राजा कालसंवरने शुभमुहूर्त व शुभयोगमें देश देशान्तरके राजाओंको आमन्त्रण
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