Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 309
________________ সন चरित्र में व्याकुल होकर सब लोग सो गये, परन्तु मामाकी याद आनेसे निद्रा चली गई। जब मुझे नींद नहीं आई, तब मैं पालकीमेंसे उतरकर धरतीपर लेट गई। सो पिछली रातमें जब मेरी आंख लग गई, तब विश्राम कर चुकने पर मेरे पिता अपनी सेनाके साथ न जाने कब चले गये। उन्होंने यह नहीं जाना कि, मैं पालकीमेंसे उतरकर धरतीमें पड़ी हूँ। अब इस निर्जनवनमें अकेली रह गयी हूँ। मैं यह भी नहीं जानती हूँ, कि, वे किस मार्ग से गये हैं। अतएव हे माता ! लाचार होकर मैं यहां बैठी हूँ अभी तक मैं अनूढा ही हूँ। अर्थात् मेरा विवाह नहीं हुआ है ।८५-८८। उस अनूढा कन्याको रूपवती और लक्षणवती देखकर सत्यभामा समीप बैठ गयी और इस प्रकार मीठे वचन बोली, हे अनघे ! यदि तू मेरे सुभानुकुमारके साथ विवाह करना स्वीकार करे, तो में अपने महलमें ले जाकर तेरी खूब भक्ति करू।८९-६०। इसके उत्तरमें कन्याने लज्जित होकर इस प्रकार वचन कहे कि, यह तो निश्चय है कि मेरे पिता भी मुझे कहीं न कहीं देते । फिर जब आप श्रीकृष्ण नारायणकी पट्टरानी हैं, तब आपके पुत्रके साथ मेरा विवाह होनेमें क्या दोष है ? ||१-६२। कन्याके वचन सुनकर सत्यभामा उसे अपने महलमें ले आयी, और उसकी दिनोंदिन अधिकाधिक सुश्रषा करने लगी।६३। श्रासन, शयन, भोजन, विलेपन आदि के सम्पूर्ण सुखोंसे उसे इस तरह रक्खा कि उसने अपना जाता हुअा समय नहीं जाना।६४॥ कितने ही दिन बीतने पर पृथ्वीमें कामीजनोंके हृदयमें कामके बढ़ानेवाले वसन्तऋतुका भागमन हुआ।९५। वसन्तके उत्सवमें कामकी प्रबलता हो गई । आमोंमें मौर आ गये । टेसू फलोंसे लद गये । भोरोंकी झंकार और कोयलोंकी कूकसे वियोगिनी स्त्रियोंको विरह दुःख निरंकुश होकर सताने लगा। मलयकी मधुर हवा मानो वियोगियोंके तापको शान्त करनेके लिये ही चलने लगी। कामाग्निके प्रज्वलित होनेसे लोगोंकी लज्जा चली गयी। सब उन्मत्त हो गये ।९६-९८। Jain Educatinternational For Private & Personal Use Only www. j brary.org

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