Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 329
________________ प्रधान वरित्र ३२२ को शोषण करते हुये, क्षण क्षणमें दुरनेवाले अगणित चैंबरोंसे दिशाओंको ढंकते हुए, बन्दीजनों | की विरदध्वनि से सारी दिशाओंको व्याप्त करते हए, पैदल सेवकोंसे पृथ्वीको कम्पित करते हुए || और अपनी विभूतिसे जगतको तिनकाके समान दिखलाते हुए उस तीन खण्डके स्वामी श्रीकृष्णनारायणने दूर ही से गिरनार पर्वतको देखा ।६-६। वह रमणीय पर्वत मदोन्मत्त कोयलोंकी कूकसे ऐसा मालूम पड़ता था, मानों पालाप ही कर रहा है, और फलोंसे लदे हुए वहांके वृक्ष ऐसे जान पड़ते थे, मानों उसे भक्तिपूर्वक नमस्कार ही करते हैं। निरन्तर अाकाशमें भ्रमण करते हुए, सूर्यके घोड़े जिस पर्वतके शिखरपर थक कर विश्राम लेते थे, और जो अालवालोंसे प्राकुल था अर्थात् जहांके वृक्षोंके चारों ओर जल भरनेके खन्दक बने हुए थे। ऐसे गिरनार पर्वतपर श्रीकृष्णजी पहुँचे । यह पर्वत उन्हींके समान था अर्थात् जिस प्रकार वह पर्वन, उन्नतवंशवाला अर्थात् बड़े २ बांसोंवाला, सौम्य बहुतसे सत्त्व अर्थात् जीवोंसे भरा हुआ और अनेक पत्रोंसे सघन था, उसी प्रकार श्रीकृष्णजी भी उन्नतवंशवाले (कुलीन), सौम्य, बहुसत्वसमाकुल अर्थात् पराक्रमी और अनेक पत्रसंकीर्ण अर्थात् हाथी घोड़ा रथ आदि वाहनों से सघन थे ।१०-१२। श्रीकृष्णनारायण छत्र चमर हाथी घोड़ा रथ आदि राजचिह्नोंको दूरहीसे छोड़कर कितने ही श्रेष्ठ राजाओंके साथ जो विनीत और विस्मित हो रहे थे, भगवानके समवसरणमें पहुँचे। मानस्थभों, सरोवरों, नाट्यशालाओं, चँदोवों, छत्रों, झारियों, पुष्पमालाओं, सिंह आदिके चिह्नोंवाली धुजाओं और अनेक महोत्सवोंसे उक्त समवसरण शोभायमान हो रहा था ।१३-१६। वहां सिंहासन पर बैठे हुए और तीन छत्रों तथा दुरते हुए चँवरोंसे युक्त नेमिनाथ भगवानको देखकर नारायणने तीन प्रदक्षिणा दी, विधिपूर्वक पूजा की और उत्कृष्ट भक्तिसे नमस्कार करके इसप्रकार स्तुति की, हे भगवन् ! श्राप तीन जगतके स्वामी हैं, ज्ञानवान हैं, तृष्णारहित हैं, क्षमा श्री ही धृति कीर्ति आदिसे निरंतर शोभित हैं, विद्याधर भूमिगोचरीदेवश्रादि आपके चरणकमलोंको www. j or Privat & Personal use Jain Educatiemational brary.org

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