Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 356
________________ प्रद्युम्न शास्त्रका माहात्म्य। परित ३४६ सुख प्रदान करें ।६१॥ इस गुणोंके समुद्र और आनन्दकारी प्रद्युम्नचरित्र नामके ग्रन्थको जो बुद्धिमान भव्य जीव अादरके साथ सुनते हैं, वे मनुष्यपर्याय तथा देवपर्याय के धन, सौभाग्य, राज्य प्रादि सुखोंको पाकर के और फिर मुनियों में श्रेष्ठ होकरके केवलज्ञान प्राप्त करते हैं, तथा अन्त में पवित्र सिद्धलोकको सिधारते हैं ।६२। ___प्रन्थकर्ता की प्राथना। ___न में निर्मल व्याकरण शास्त्रको जानता हूँ, न काव्य जानता हूँ, न तर्क आदि जानता हूँ, और न अलंकारादि गुणोंसे अलंकृत छन्दोंको भी जानता हूँ। मैंने यह पवित्र चरित्र बनाया है, सो किसी प्रकार की कीर्ति आदिकी वांछासे अथवा मानके वशसे नहीं बनाया है, किन्तु पापोंके नाश करनेके लिये बनाया है ।६३। जो विशुद्ध बुद्धिवाले हैं, शास्त्रोंके पार पहुँचे हुए हैं, परोपकार करनेमें कुशल हैं, पापसे रहित हैं, और भव्य हैं, उन्हें मुझ मन्दबुद्धिके बनाये हुए, गुणसमुद्र कामदेवके इस निर्मल चरित्रको संशोधन करके पृथ्वीपर विस्तृत करना चाहिये अर्थात् इसका प्रचार करना चाहिये। प्रन्थकर्ताका परिचय।। काष्ठासंघके नन्दीतट नामके पवित्र गच्छमें गुणोंके समुद्र श्रीरामसेन नामके आचार्य हुए। फिर उनके पट्टको शोभित करनेवाले और पापोंके नाश करने वाले रत्नकीर्ति आचार्य हुए। इनके शिष्य लक्ष्मणसेन जो कि शीलकी खानि और सर्वगुणसम्पन्न हुए थे, और उनके पट्टको धारण करने वाले धीरवीर तथा गुणी भीमसेनसूरि हुए। इन्हीं भीमसेन गुरुके चरणोंके प्रसादसे सोमकीर्तिसूरिने यह रमणीय चरित्र अपनी भक्ति के वश से बनाया है। भव्य जीवों को इसे संशोधन करके पढ़ना www.jabrary.org Jain Educati For Private & Personal Use Only emational

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