Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 348
________________ प्रद्यन्न -5 ३४१ सर्वगुणसम्पन्न, मनके हरनेवाले, प्राणप्यारे चंचल, और भोले पुत्रो के साथ स्नेहपूर्वक रमण करते थे, वे ही अब एकाकी, निष्पृह, तथा शान्त होकर परम वैराग्यको धारण करते हुए निर्जनवनमें निवास करते हैं जहां एक चित्त ही सहायक है । जो कामकुमार मदोन्मत्त तथा अगणित सेनायुक्त शत्रुओंका करते थे, वे ही अब दयावान और जितेन्द्रिय होकर छह कायके जीवोंको रक्षा करने में तत्पर रहते हैं और संसार को अपने समान देखते हैं। राजमार्गके श्राश्रयसे जो पहले प्राणियों के घात करनेवाले भयकारी सत्यतारहित ( सावद्य वचनको भी असत्य माना है ) वचन बोलते थे, वे ही ब चार प्रकार के सत्यसे पवित्र हुए, मनोहर, हितकारी और जिनेन्द्रदेव के मुखसे उत्पन्न हुए सद्वचन बोलते हैं । पहले राज्य करते समय पापके भय से रहित तथा उन्मत्त होकर जो बलपूर्वक दूसरों की द्रव्य तथा कन्या आदि छीन लेते थे, वे ही अब दूसरेके धनको तिनके के समान समझते हैं । उसे मन वचन कायसे कभी ग्रहण नहीं करते हैं । गृहस्थावस्था में जिन्होंने स्त्रियादिकों के साथ में पंचेन्द्रियों को सुखके देनेवाले नानाप्रकारके मनोहर भोग भोगे थे, वे ही अब रागरहित होकर उन भोगसुखोंका मन से भी कभी स्मरण नहीं करते हैं । उनके चिन्तवनको भी शीलका नाश करनेवाला समझते हैं । पूर्वसे जो प्रभुताके रसमें छके हुए धन, धान्य, रत्न, हाथी, घोड़ा, तथा सुवर्णादिसे तृप्त नहीं होते थे, वे ही अब सब झगड़ोंसे मुक्त होकर और समस्त परिग्रह छोड़कर, अन्तरात्मा के रसमें रंगे हुये रहते हैं । अपने शरीर में भी उन्हें मोह नहीं है । ५६-६९। 1 तीन प्रकार की गुप्ति और पांच प्रकारकी समितियों को पालते हुए वे धीर योगीश्वर गंभीर समुद्रके समान शोभित होते हैं । यशके बड़े भारी गृहस्वरूप उन कामकुमार मुनिने दुस्सह तप किया और चारित्रका पालन किया । जो धीरवीर तथा बुद्धिमान हैं, तपोवनका सेवन उन्हींके लिये युक्त है कायर तथा कुबुद्धियोंके लिये नहीं । ७०७२ | श्री प्रद्युम्नकुमार योगीन्द्र जो कि शुद्धबुद्धि और For Private & Personal Use Only ८६ Jain Education International चरित्र www.jaelbrary.org

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