Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 345
________________ प्रद्युम्न जा सकता है ।२-१२। जहां पर मृगादि जीवधारी नहीं होते थे, ऐसे उत्तम और प्रासुक स्थानमें प्रद्युम्नकुमार मुनि | विविक्तशय्यासन नामक तप करते थे। वर्षाकालमें जब घोर वर्षा होती थी, वृक्षके नीचे दुस्साध्य स्थान | में तीन प्रकारका योग धारण करके निश्चल हो जाते थे। जब शीतकाल अाता था, कठिन जाड़ा पड़ता था, तब रातको नदीके किनारे वे धीर वीर ध्यानमें स्थिर हो जाते थे। इसीप्रकारसे जब ग्रीष्म का समय आता था, दुस्सह गर्मी पड़ती थी, तब पर्वतके शिखर पर जाकर जलती हुई शिला पर बैठ कर तप करते थे और कठिन ताप सहन करते थे ।१४-१७॥ प्रमाद सहित मन वचन कायसे तथा उनके भेदाभेदोंसे अर्थात् मन वचनसे मन कायसे कायवचन आदिसे जो पाप तथा अतीचार होते थे, उनके रोकने के लिये उन प्रमादरहित मुनीश्वरने बाह्य कायक्लेशादि योगसे और अन्तरंग मनोनिग्रह आदिसे घोर तपश्चरण किया । अरहंत सिद्ध प्राचार्य उपाध्याय तथा साधुओंकी अालसरहित होकर भक्ति की । सम्यक्त्वसे शोभित और विनयसे विभूषित होकर ऋषि मुनियोंका भक्तिपूर्वक दश प्रकारका वैयावृत्य किया। जिनेन्द्र भगवानके मुखसे निकला हुआ, पद अक्षरादि संयुक्त और बड़े विस्तार वाला द्वादशांग श्र तज्ञान दया संयम और क्षमाके धारण करनेवाले उन प्रद्युम्नमुनिने गुरुभक्तिमें तत्पर रहकर युक्तिपूर्वक पढ़ा ।१८-२३॥ बाह्य और अन्तरंगरूप सब परिग्रहको छोड़कर शरीरका किसी भी प्रकारका संस्कार उन्होंने नहीं किया। शरीर में उनकी ऐसी निरादर बुद्धि हो गई कि, उसकी ओर उनका किंचित् भी लक्ष्य नहीं रहा। आर्त रौद्रादि ध्यानोंको उन्होंने सर्वथा छोड़ दिया और धर्मध्यान शुक्लध्यानको वे आदरपूर्वक करने लगे। प्रतिक्रमण वन्दना आदि छह प्रकारके आवश्यकोंको उन्होंने नियमपूर्वक किया। रातको वे निरन्तर मौनपूर्वक कायोत्सर्ग धारण करके रहे । लोगोंके भयङ्कर आक्षेपोंसे, ताड़नाओंसे, Jain Educato International For Private & Personal Use Only www.jnelibrary.org

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