Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 333
________________ प्रधुम्न नहीं सकता कि द्वारावती कभी नष्ट नहीं होगी और श्रीकृष्ण सदा जीते रहेंगे।५६-६१। नेमिभगवान ने कहा कि द्वारिका नगरी बारह वर्षके पीछे द्वीपायन मुनिके कोपसे नष्ट होगी, और उस क्रोधका कारण मद्य (शराब) होगा। तथा श्रीकृष्णजीकी मृत्यु जरत्कुमारके बाणसे होगी। वह शिकारके व्यसनमें फँसकर कोशांब वनमें जावेगा और वहां बाण चलावेगा। वही बाण नारायणकी मृत्युका कारण है ।६२-६३। यह सुनकर सब ही लोग भयसे व्याकुल हो गये । ठीक ही है, सम्पत्तिमें जिस प्रकारसे सुख होता है, उसी प्रकारसे विपत्ति में दुःख भी होता है। द्वारिकाके नष्ट होनेका तथा श्री कृष्णकी मृत्युका भविष्य सुनकर कई लोग तो डरके मारे दूसरे नगरको चले गये और कई लोग वैरागी होकर सर्वज्ञदेवकी शरणको प्राप्त हुए अर्थात् दीक्षित हो गये । और द्वीपायन मुनि भगवानके वचनोंको मिथ्या करनेके लिये दूने नैराग्ययुक्त परिणाम करके विदेशको चले गये। वहां द्वारिका के समीप नहीं रहे । इसी प्रकार जरत्कुमार यह सोचकर किसी निर्जन वनको चला गया कि जिनके चरणों की समस्त शूरवीरोंके मुकुटोंसे पूजा होती है, वे ही श्रीकृष्णजी जब मेरे द्वारा मारे जावेंगे, तब मैं यहां रहकर क्या करूँगा ? भाइयोंने उसे रोका, परन्तु वह नहीं रुका; द्वारिका छोड़कर चला गया १६४-६८। इसके पश्चात् श्रीकृष्णजीने द्वारिका जलनेके डरसे नगरीमें मुनादी पिटवाई कि जितने मद्य पीने वाले हैं, वे मद्यका सर्वथा सम्बन्ध छोड़ देवें । और यह भी प्रगट किया कि यदि हमारी कोई प्यारी स्त्री, पुत्र, भाई आदि जिनदीक्षा लेना चाहें, तप करना चाहें, तो करें, हम कभी नहीं रोकेंगे।६१-७॥ द्वारिकाको इस प्रकार भविष्यके भयसे व्याकुल देखकर सूर्यदेव रक्त होनेपर भी अपनी उदय लक्ष्मीकी निन्दा करके पराङ मुख हो गये । नारायणके दुःखको तथा भावीको देखनेमें असमर्थ होकर वे अस्ताचल पर्वतके तटसे समुद्रमें गिर पड़े। सारांश यह कि सूर्य अस्त हो गया। उसके समुद्रमें पतन - - - Jain Educati emational www.jaikliprary.org

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