Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 331
________________ | चरित्र | कापोती ये तीन अशुभ हैं तथा अभव्य जीवोंके होती हैं। वे सब लेश्या जीवोंके विशेष २ प्रकारके ___ प्रद्युम्न । भावोंसे होती हैं । ध्यान चार प्रकारके हैं मार्गणा चौदह प्रकारकी हैं धर्म दश प्रकारका है और तप अन्तरंग तथा बहिरंगके योगसे बारह प्रकारका है ।२८-३७। इस प्रकार भगवानकी वाणी सुनकरके श्रीकृष्णजीने त्रेसठशलाका पुरुषोंका चरित्र पूछा, तब उन्होंने पांचों कल्याण, गुरु, पुर, नाम, जिन स्वर्गों से चय करके आये उनके नाम, जन्मके नगर, माता, पिता, नक्षत्र, शरीर की ऊँचाई, वर्ण, (रंग) वंश, राज्यकाल, तप, ज्ञान और निर्वाणके स्थान, और जितने राजाओंके साथ दीक्षा ली; उनकी संख्या, आदि छयालीस २ बातें प्रत्येक तीर्थकरकी कहीं। फिर छह खंड पृथ्वीके स्वामी बारह चक्रवर्तियोंके, नव नारायणोंके, नव प्रतिनारायणोंके, और नव बल. भद्रोंके नगर, वंश, माता, पिता, जिन जिन तीर्थंकरोंके तीर्थमें उत्पन्न हुए उनके नाम, उत्पत्ति, बुद्धि और मरण आदि सब विषयोंका प्रतिपादन किया जिसे सुनकर सारी सभा वैराग्यसे भूषित हो गई। अर्थात् सब लोगोंके चित्तपर वैराग्य छा गया ।३८-४४॥ समवसरण सभासे श्रीकृष्णजीके भाई गजकुमार भी बैठे हुए थे। उन्हें ऐसा वैराग्य हुआ कि, वे तत्काल ही उठे और भगवानसे दीक्षा लेकर पर्वतके शिखरपर चले गये, और वहां अपने हाथसे अपने केश उखाड़कर ध्यान धारण करके विराजमान हो गये । एक सोमशर्मा नामका ब्राह्मण गजकुमारका श्वसुर था। वह दीक्षा लेनेकी खबर पाकर गजकुमार मुनिके समीप गया और उन्हें नानाप्रकारके वचनोंसे समझाने लगा कि, इस मुनिदीक्षाको छोड़कर घर चलो। परन्तु जब मुनिराजपर उसके वचनों का कुछ भी असर नहीं हुआ तब वह बहुत ही कुपित हुअा अग्निमयी दग्धिकाको (?) उस पापीने उनके सिर पर रखदी। परन्तु इतने पर भी अर्थात् शरीरके जलने लगने पर भो वे योगिराज अपने ध्यानसे जरा भी च्युत नहीं हुए। आखिर शरीरके बहुत जल जानेसे जब कण्ठगत प्राण हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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