Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 312
________________ प्रथम्न ३०५ उसी समय प्रद्युम्नकुमारने राजाके अन्तः पुरमें अपनी विद्या को भेजी, और उसके द्वारा उन कन्याओं का हरण करा लिया । पीछेसे आप सभामेंसे निकलकर और उन कन्याओंको आकाश में ले जाकर बोले, हे भीष्मपुत्र रूप्यकुमार ! सुनो ये तुम्हारी कन्यायें हैं। इनका मैंने हरण किया है । मैं द्वारिका धीश श्रीकृष्णनारायणका पुत्र हूँ । तुमने मांगने पर मुझे ये कन्यायें नहीं दी थीं, अतएवं मैंने इन्हें हर( है | अब तुम्हें अपनी सेनासहित आकर इन्हें मेरे पाससे छुड़ा लेना चाहिये | २१-२६। यह सुनते ही रूप्यकुमार सारी सेना लेकर युद्ध करने के लिये निकल पड़ा । परन्तु मंत्री तथा दूसरे वृद्ध लोग उसे समझा बुझाकर नगर में लौटा लाये । युद्ध नहीं करने दिया । इधर प्रद्युम्न और शम्बुकुमार उन कन्याओं को लेकर द्वारिका में आ गये । ३०-३१ । द्वारिका में पहुँचकर प्रद्युम्न कुमारने भी बड़ा भारी उत्सव करके उन दो सौ कन्याओं का विवाह शंबुकुमार के साथ कर दिया। भाईका विवाह विधिपूर्वक कर चुकनेपर प्रद्युम्न कुमार बहुत सुखी हुआ । होना ही चाहिये । कार्यके सिद्ध होने पर सब ही को सुख होता है ।३२-३३ | सम्पूर्ण लोगों के चित्तको हरण करता हुआ और दर्शनमात्र से ही स्त्रियोंको सन्तुष्ट करता हुआ प्रद्युम्न कुमार सब लोगों का प्राणप्यारा बन गया । कुछ दिनोंमें उसके रति नामकी स्त्रीसे एक अनुरुद्ध नामका पुत्र हुआ, जो अतिशय सुन्दर था समस्त विद्याओंसे शोभित होकर वह क्रम क्रमसे यौवन अवस्थाको प्राप्त होगया । ३४-३६। इधर शंबुकुमारके भी सौ पुत्र उत्पन्न हुए । सो कामदेव उनके साथ और अपने पुत्रोंके साथ इच्छानुसार सुख भोगने लगे । ३७। वे नदी, नद, तालाब और वन आदि अनेक स्थानों में अपनी स्त्रियोंके साथ जाते थे और वहां चिन्ता करते ही उपस्थित होने वाले श्रेष्ठ सुखों को भोगते थे । ३८-३६। हेमन्त, शिशिर, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा और शरदऋतुओं में वे यथाक्रमसे यथायोग्य चिन्तित सुखों का अनुभव करते थे । रति समय में कामिनियोंके चित्तको चुरानेवाले प्रद्युम्न कुमार जब हेमन्त ऋतु For Private & Personal Use Only Jain Education international ७७ चरित्र www.jalbrary.org

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