Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 300
________________ बनाये हुए विराजमान थे। जांबुवती उनसे जाकर मिली, और चरणकमलों को नमस्कार करके खड़ी हो रही । ५४-५५। उसे देखकर नारायण बहुत प्रसन्न हुए और सत्यभामा समझकर उससे मुसकुराते हुए बोले, हे देवी! तुमने बहुत अच्छा किया, जो यहां आगयीं । निश्चय समझो कि अब प्रद्युम्नका छोटा भाई तुम्हारे ही उदरमें अवतार लेगा । ५६-५७। प्रद्युम्नने तुम्हारे इस वनमें आनेका वृत्तांत नहीं जाना होगा । उसने सोलहवें स्वर्ग के उस देवके (इन्द्र के) यानेका वृत्तांत भी नहीं जाना था यह अच्छा ही हुआ । नहीं तो उसकी मायाका बड़ा डर था । ५८। ऐसा कहकर नारायण उस सत्यभामा के साथ रतिक्रीड़ा करने लगे । और वह भी अपने हाव भाव विभ्रमविलासों से मोहित करके रमण करने लगी । ५६ । सो सुरत के अन्त में वही सोलहवें स्वर्गका देव चयकर जांबुवती के गर्भ में स्थित हो गया । ठोक ही है, पुण्य से ऐसा कौनसा पदार्थ है, जो प्राप्त हो नहीं सके ? । ६० । इसके पश्चात् श्रीकृष्ण जीने दूसरे को नहीं मिल सकै, ऐसा वह हार जो कि देव दे गया था, उस बनावटी सत्यभामाको समर्पण कर दिया । सो उसने उसे प्रसन्नता से अपने कण्ठमें धारण कर लिया । हार पहिन चुकने के पीछे उसने अपनी अंगुलीसे मुद्रिका उतार ली और अपना असली रूप प्रगट कर दिया । ६१-६२। 1 जांबुवतीका रूप देखकर कृष्णजी बड़े विस्मित हुए। और बारम्बार विचार करने लगे कि, यह क्या कौतुक हुआ ? याखिर जांबुवती से पूछा, क्या तुझको प्रद्युम्नकुमार मिल गया था, जिसने अपनी विद्या प्रभाव से यह सत्यभामाका रूप बना दिया था ? । ६३-६४। जांबुवती नारायणके चरण कमलोंको नमस्कार करके बोली, हे कृपा धार ! मुझ पर कृपा करो, और पुराने क्रोधको छोड़ दो । ६५ । उन्होंने भी प्रसन्न होकर उत्तर दिया, प्रिये ! तुम पर जो क्रोध था, वह नष्ट हो गया। आज से तुम मेरे प्राणोंसे भी अतिशय प्यारी रानी हुई । ६६ । मैंने यह पुत्र जो अब तेरे गर्भ में आया है, सत्यभामाको देनेका निश्चय किया था । परन्तु दैवने ( भाग्यने ) क्षणभर में कुछका कुछ कर दिया । जब Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रथम्न २६३ ७४ चरित्र www.ainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358