Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 303
________________ ___ पपन्न परित श्राकार प्रकाशमान मणिके समान था, शरीर सांवला था और अंगोपांग बड़े ही सुन्दर थे। जिससमय वह सम्पूर्ण शुभलक्षणोंसे युक्त बालक हुआ, ठीक उसी समय कृष्णमहाराजके सारथी पद्मनाभिके सुदास्क नामका पुत्र हुआ, वीरनामके महामंत्रीके बुद्धिसेन नामका पुत्र हुआ और गरुड़केतु नामके सेनापतिके जयसेन नामका पुत्र हुआ । इसप्रकार जांबुवतीके पुत्रके साथ ही तीन पुत्र और हुए, जिनके साथ वह कुमार वृद्धिको प्राप्त होने लगा। इसके लिये खूब जलसा किये गये । दान किया गया, जिनमन्दिरोंमें पूजा की गयी, और कैदी छोड़ दिये गये। सम्पूर्ण स्वजन जनोंने इस बालकका नाम शम्बुकुमार रख दिया।६४-६६। इसके पश्चात् सत्यभामाने भी एक शुभ लक्षण वाले पुत्रको जना। उसका नाम जितभानु रक्खा गया ।१००। सब लोगोंके प्यारे, सुन्दर वेषके धारण करनेवाले, पूर्ण चन्द्रमाके समान मुखवाले, कमलोंके समान नेत्र वाले और नेत्र तथा चित्तको हरण करनेवाले वे दोनों बालक सारी यदुवंशियोंकी स्त्रियोंके करकमलों पर निवास करनेवाले भ्रमरोंके समान दिखायी देने लगे ।१२। निरन्तर एक हाथसे दूसरे हाथ पर संचार करने वाले, सुन्दर लक्षणोंवाले, प्रद्युम्न तथा भानुकुमारके दिये नाना प्रकारके भूषणों से शोभित, रुम झुम रुम झुम बजती हुई पैजनियों तथा किंकणियोंसे युक्त, सुन्दर कोमल पैर रखने के लिये तैयार वे दोनों कुमार क्रमक्रमसे बढ़ने लगे। प्रद्युम्नकुमार अपने छोटे भ्राता शंबुकुमारको प्रति दिन पढ़ाने लगा और भानुकुमार सुभानुकुमारको अपनी विद्या कला कौशल्यादि सिखाने लगा।३-६। जिससे दोनों ही कुमार विद्याकलाओं में कुशल हो गये तथा कुछ समयमें सुन्दर बाल्यावस्था पारकर युवावस्थामें प्रवेश करने लगे। एक दिनकी बात है कि वे अपने साथमें पैदा हुए मित्रोंसे वेष्टित होकर क्रीड़ा करते हुए श्रीकृष्णजीकी सभामें आये, जो चित्र विचित्र पुष्पमालायें पहने अनेक राजाओंसे परिपूर्ण थी और Jain Educatiointemational For Private & Personal Use Only www.jamel brary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358