Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 285
________________ कटकके अन्त तक पहुँच गई, यह देखकर शराशनके धारण करने वाले प्रद्युम्नकुमारने अपने वारुण बाणका स्मरण करके शत्रु के उसे ऊपर चलाया। सो उस महा मेघबाणने जो कि इन्द्रधनुष करके युक्त था, तथा जो बिजली सहित गरजता था, आकाशसे वज्र गिराते हुए मूसलाधार जलधारा बरसाते हुए थोड़ी ही देर में अग्निबाणको नष्ट कर दिया । ६६-७२ । मधुसूदनने अर्थात् श्रीकृष्णजीने अपने अग्निबाणको इसतरह नष्ट हुआ देखकर महावेगका धारण करनेवाला वायु बाण चलाया । ७३ । सो उसके चलनेसे क्षण ही भरमें मनुष्य, घोड़े, हाथी, रथ आदि अपने छत्र केतु और धुजाओंके साथ पत्तों सरीखे बहुत दूर तक उड़ गये ।७४ | इसके पश्चात् कामकुमारने मोहन करनेवाला तामस बाण चलाया, जो भ्रमरोंके तथा कज्जल के समान काला और यहां वहांसे चंचल था । ७५ । उसने एक ही साथ सब पृथ्वीको खल वृत्तिवाला बना दिया । किसीको कुछ भी नहीं सूझ पड़ने लगा। सो ठीक ही है, अन्धकारकी वृत्ति स्वभावसे ही व्यामोहकी उत्पन्न करने वाली होती है । ७६ । उन दोनोंने इसप्रकारके और भी अतिशय प्रचंड दिव्य अस्त्र एक दूसरे पर चलाये, जो विद्याधरों और देवोंको भी आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले थे ।७७| श्रीकृष्णजीने प्रद्युम्नकुमार के ऊपर जो २ अत्र चलाये, वे यद्यपि अमोघ थे, अर्थात् कभी खाली जानेवाले नहीं थे, परन्तु व्यर्थ ही गये । ७८ । क्योंकि यह एक नियम है कि, जितने देवोपनीत बाण हैं, वे अपने कुलके ऊपर कभी नहीं चलते हैं ।७९। अपने बाणों के व्यर्थ जानेसे श्रीकृष्ण tet प्रद्युम्नकी शक्तिके विषय में बड़ा भारी अचरज हुआ। अपने बाण व्यर्थ होनेसे और सेना के नष्ट हो जानेसे वे चिन्ता करने लगे कि, बिना मल्लयुद्ध किए यह दुर्जन शत्रु नहीं जीता जा सकता है, तब मैं मल्लयुद्ध ही करूंगा । ऐसा निश्चय करके और बद्ध परिकर होकर बलवान नारायण बाहुयुद्ध करने की इच्छासे रथसे पृथ्वीपर कूद पड़े । उनके चरणोंके प्रहार से धरती में गड्ढ हो गये, और पर्वतोंकी संधियां शिथिल पड़ गयीं । ८० - ८३ । फूले हुये कमलके समान दिव्य शरीरवाले Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रथम्न २७८ चरि www.jainelibrary.org

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